नीति - विज्ञान | Neeti - Vigyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14.21 MB
कुल पष्ठ :
402
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीयुत बाबू गोवर्धन लाल - Shriyut Babu Govardhan Lal
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चिषय-प्रवेश । चर
जिनके विचार हमसे मिलते हैं । हाथ पकड कर हम उनकी सहायता न
भी करे तौभी केवल मात्र उनके पथमें हमारे किसी बाधाके न रखनेसे
कया उनका कम उपकार होता है !
अपने विचारोददीके कारण मनुष्यने टैविक और पैशाचिक दोनो
प्रकारका काम किया है । उसने संसारहितके छिए अपना प्राण तक
परित्याग किया है । अपने विचारोहीके कारण उसने देश बिदेश
विजय किये है, बच्चों और खियोको अग्निके हवाले किया है तथा
काफिरों और अविश्वासियोकी हत्या की है ।
ज्ञानका माहात्म्य अनन्त है । हमारा प्रत्येक कार्य्य ज्ञानका दी
डर नतीजा है । प्रलेक काम ज्ानरूपी वीजका ही फठ
का और फूल है । अज्ञान ही सारे दुःखो और क्लेशोका
कारण है। प्राकृतिक नियमोंके न जाननेके कारणसे ही
मनुष्य अनेको दुःख शेठता है । उदाहरणके ठिए आप बीमारियों-
हीको छीजिए । क्या प्रायः सभी बीमारियोकी जड़ हमारा अज्ञान नही
है « यदि हमें जीवनके सभी नियम प्र्णतः माछम होते--यदि हमें
खाने पीने या रहने सहनेकी उत्तम रीति मादम होती--तो क्या हम
सहजमें दी इतनी वीमारियोके लक्ष्य बन सकते १? इसी कारण हमारे
शाख्रोंने ज्ञानको इतनी महत्ता दी है और अनज्ञानको समस्त दुःखोका
कारण ठहराया है ।
तब क्या ज्ञानका वह अंग जिसके द्वारा मनुष्योके परस्परका कर्तव्य
स्थिर होता है एकदम व्यर्थ है १ नीतिशाख्र सदाचरणका
इज गाख्र है। यदि हमें हर वातमे ज्ञानकी इतनी आवश्य-
मदत्ता । न [ज
कता है तो क्या हमे इस शास््रकी कोई जरूरत नही £
क्या हमें नीतिके स्वरूप और उत्पत्तिके सम्बन्वमें छुछ भी जानने-
User Reviews
No Reviews | Add Yours...