नीति - विज्ञान | Neeti - Vigyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चिषय-प्रवेश । चर जिनके विचार हमसे मिलते हैं । हाथ पकड कर हम उनकी सहायता न भी करे तौभी केवल मात्र उनके पथमें हमारे किसी बाधाके न रखनेसे कया उनका कम उपकार होता है ! अपने विचारोददीके कारण मनुष्यने टैविक और पैशाचिक दोनो प्रकारका काम किया है । उसने संसारहितके छिए अपना प्राण तक परित्याग किया है । अपने विचारोहीके कारण उसने देश बिदेश विजय किये है, बच्चों और खियोको अग्निके हवाले किया है तथा काफिरों और अविश्वासियोकी हत्या की है । ज्ञानका माहात्म्य अनन्त है । हमारा प्रत्येक कार्य्य ज्ञानका दी डर नतीजा है । प्रलेक काम ज्ानरूपी वीजका ही फठ का और फूल है । अज्ञान ही सारे दुःखो और क्लेशोका कारण है। प्राकृतिक नियमोंके न जाननेके कारणसे ही मनुष्य अनेको दुःख शेठता है । उदाहरणके ठिए आप बीमारियों- हीको छीजिए । क्या प्रायः सभी बीमारियोकी जड़ हमारा अज्ञान नही है « यदि हमें जीवनके सभी नियम प्र्णतः माछम होते--यदि हमें खाने पीने या रहने सहनेकी उत्तम रीति मादम होती--तो क्या हम सहजमें दी इतनी वीमारियोके लक्ष्य बन सकते १? इसी कारण हमारे शाख्रोंने ज्ञानको इतनी महत्ता दी है और अनज्ञानको समस्त दुःखोका कारण ठहराया है । तब क्या ज्ञानका वह अंग जिसके द्वारा मनुष्योके परस्परका कर्तव्य स्थिर होता है एकदम व्यर्थ है १ नीतिशाख्र सदाचरणका इज गाख्र है। यदि हमें हर वातमे ज्ञानकी इतनी आवश्य- मदत्ता । न [ज कता है तो क्या हमे इस शास््रकी कोई जरूरत नही £ क्या हमें नीतिके स्वरूप और उत्पत्तिके सम्बन्वमें छुछ भी जानने-




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