दानदर्पण ब्राह्मणअर्पण भाग - 3 | Danadarpan Brahmanarpan Bhag - 3

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Danadarpan Brahmanarpan Bhag - 3  by दामोदर प्रसाद शर्मा - Damodar Prasad Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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# ओश्म--खम्प्रह्म $# ॥ %-॥ घ-न्य-वा-द ॥ # ॥ १-सब से प्रथप में अनर, अमर, अभय, अजन्पा, अनादि, अनुपम, निराकार, निविकार, न्यायकारी, दयाह, नित्य पवित्र, परमात्मा को अनेकानेक धन्यदाद देता हूं कि जिसने मुझ को सबवे भ्कार का सुख दिया हु भाहा २-हितीय महष दयाननद को अनेक धन्यवाद देता हूँ कि जिन के सत्पोपदेशां ने मेरी पलीद चुद्धि को सुधारा ओर सत्य भागे पर चकना सिखाया ॥ , ई-तृतीय श्री घह्ा पान्यध्र चतुर्वेदी एण्टित श्री केशवदेव मी पहारान सत्यधरस्मोंपदेशककों वहुत से धन्यवाद देता हू किलि नहाने इस पुस्तक रचने में सुश दहुत कुछ सम्पति-सदह्यायतादी॥ -चतुर्थ बन कृथीशवरां को धम्यवाद देता हूँ कि जिन्‍हों ने अपनी अपनी रुम्दर दुन्दर कवितायें भेभकर इस लघु पुस्तक की शोभा पढ़ाई <-पथ्चम अपनी श्रेष्टन्या््या भार्य्या दयादेवी नी को धन्‍य- बाद देता हूं कि जिन्हों ने इस पुस्तक के छपवाने का एक बडा भारी भार अपने सिर पर दिया अथात्‌ जिन्‍हों ने इस पुरुतझ फेछपवाने के छिये मलजता पूवें्त घिज धन दिया ॥ ६-प९सू अपनी परम प्यारीन्दुछारी पुद्ियों (चन्द्रदती और सय्यवत्ती ) को आशीवाद देता ६ कि चिहोंने इसके संशोधन 5, , में घढ़ा भारो परिश्रम फिया ॥ _ घम्षवाद देनेवाक्ता--- दामादर-प्रसाद-शर्म्मों ' ढ्वान त्यागी ऊएइर[ ननेवार्सा




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