श्रीमद् अमरसूरि काव्यम् | Shreemad Amarsuri Kavyam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
296
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( २५ )
कि मुझे इतने धन की आय का विश्वास नहीं था। किन्तु अब क्या होता है ? उस
भ्रत्याख्यान के फलस्वरूप सीमा से अधिक आय का दान, पटवा साहब की एहवेली
पर होने लगा । पटवा साहव ने स्वय जहाँ आचायंश्री विराज रहे थे, वहाँ पहुँच कर,
' दर्शन कर बन्दना करते हुए श्रावको के सम्मुख अपनी बात को प्रकट किया |
आगे किशनगढ़, अजमेर स्पर्श करते हुए आचायंश्री जब चण्डावल पधारे
तो फिर जैनयतियो मे हल-चल पैदा होने लगी । क्योकि आचार्यश्री की कीति-
पताका सारे मरुधर-प्रदेश मे लहराने लगी थी। अब करें भी तो क्या करें ? ये
आचार्यश्री तो मरुभूमि पर तूफान होकर चढे ही चले जा रहे थे । मरता क्या नही
करता ? इसलिए उन्होने सोचा कि न रहे बाँस, न वजेगी बाँसुरी । अत आचायंश्री
के जीवन की समाप्ति की योजना स्थिर की गई । किन्तु काम भी हो, और मालूम
न हो--इस नीति के अनुसार उन्होने आचार्यश्री की भाव-मक्ति का सहारा लिया।
और सोजत नगर को उन्होने योजना को मृत्तरूप देने का स्थल चुना ।
विहार करते हुए भाचायंश्री जब दोपहर समाप्त होते होते सोजत पहुँचे
ही थे कि ये बने-बनाए भक्त सामने आए। वन्दना आदि के पीछे आचार्यश्री को
मुनिमण्डल के साथ ठहराने की चर्चा करते लगे। और इधर-उधर के स्थानो का
नाम लेकर सबसे बढिया स्थान अपनी योजना के अनुसार एक मस्जिद, जो कि
' जिन्द के रहने की वजह से उजडी पडी थी, आचारयंश्री को सुखसाता का स्थान
बताकर जबरन टिका दिया | किन्तु आचार्येश्री इन को ताड गए कि आखिर मुझे
मूनिमण्डल के साथ किसलिए ठहराया जा रहा है । साथ ही वे यह भी बताना
चाहते थे कि कुछ भी करलो, किन्तु ये तुम्हारे हथकाण्डे कभी सफल नही हो
सकेंगे । क्योकि उनको अपने ऊपर विश्वास था। सच्चे तपस्वी,और साधक मे
अपार गात्मबल होता है । वह किसी भी बाधा का डट कर सामना कर सकता है ।
योजना के अनुसार वे कृत्रिम भक्त मुनिमण्डल के साथ आचाययंश्री को
'मस्जिद मे 5हरा कर एक-एक करके सटक गए । इघर आचार्यश्री अपने मुनियो
के साथ अपने सायन्तन कृत्य के सम्पादन में सलग्न हो गए । धीरे-धीरे सायन्तन
कृत्य भी पूर्ण हुए । गुरुसेवा के पश्चात् मुनिजन भी रात्रि अधिक होने पर अपने-
अपने स्थान पर जाकर सो गए , किन्तु आचार्य श्री अकेले अपने ध्यान मे मग्त थे ।
आधी रात वीती होगी कि जिन्द ने अपना उपद्रव प्रारम्भ किया । जिन्द इस बात
पर कुद्ध था कि आप सब मेरे स्थान पर आकर क्यो ठहरे हैं? उत्तर न मिलने
पर कुद्ध जिन्द ने आचायंश्री के ऊपर जनेक शारीरिक बल प्रयोग किए । किन्तु
आचार्यश्नी अविचल शान्तभाव से वीजसहित भस्त्र-जप मे ही सलग्न रहे ।
जिन्द इस मस्जिद में ठहरने वालो को सदा-सदा के लिए सुलाता आ रहा था ।
किन्तु आचाये श्री के सामने उसकी कुछ भी नहीं चल रही थी । वह अपनी मनमानी
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