आत्मशुद्धि मार्ग | Atam Shudhi Marg

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Atam Shudhi Marg by छगनलाल जी महाराज - Chhaganalal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १९ ) और सर्व सकझल्प विक्पों का त्यात करऊे इस शरोर पर कप २ अख # ३ ० [मे भी अपना मम इटा लेते दे । भोर सथारा सलेखना करके परम शान्ति धारण कर भपना शेप जोपन पूण करते बे मद्दान्‌ भात्मा या तो तड्यदी ( उसी भय मे ) मो । शत्ति कर परमाल्ता बन जाते हैं। या महुष्प देवता के कुछ भर करके भवान्तर में मोत्त प्राप्त करते ई+ ओर अनादि समार परिसमण रूप सन्वति का उच्छेद कर शाश्यत सुख के मोक्ता बन जाते हैँ | इस लिये प्रत्पेद् ( सव्यभात्मा को भपना अन्तिम समय (सरण) सुधारने के । लिये सदा सामधान रइना चाहिये 18० अल ....३ अमल कहावत है कि जिमझा मरण सुधरा उसका मय सुघरा क्योंकि सयम, तप, त्याग प्रत्यास्थ्यान फायमलेश झआादि साधना जावन भर इसी लिय की जाती है, कि उत्तम चरिया के भावरण से भाषों की शुद्धि रहकर अन्तिम अवसर सुधारने की भावना जगे झोर बह अपना मरण सुधारे परन्तु जिसफा मरण जिभद जाता है उप्तका सब भी विगट जाता है एक भय्र ही नहीं भभनेक भव भपिष्य के पिंगद जाते हैं | विरापक भात्मा यदि देवपादि मं भी जबि ते वेमानिक आदि ऊ्ची जाति का देय नहीं होता किस्तु इलृकी जाति का देव होता है। वहां ऊदी जाठि के देवों का बैमव, शक्ति, यश, भ्माव भादि सुझछो हि कर कमी




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