सौ सवाल : एक जवाब | Sau Sawaal : Ek Jawaab
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
112
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about प्रभाकर माचवे - Prabhakar Maachve
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)राष्ट्रवाद रे७
नैतिक आप्रह होता विः कितने अशो में कोई राष्ट्र अपती जनता के
प्रति क्तब्यों में चूक गया है, या वितने श्रशों मे वह कतव्य-तत्पर
और सेवा-परायण है । गाघो को यदि इतिहास के कसी कालखण्ड
की चुनने के लिए कहा जाता तो शायद वे अशोक या ग्रक्वर का
समय चुनते जब सव प्रवार के धर्मों को पूरी स्वतन्त्रता थी, झौर
जब कोई वाघा किसी व्यक्ति भे विश्वास और पूजा-स्वात ज्य के
अधिकार पर नही थो । गाघी जी वी राष्ट्रीयता व्यविति-स्वतातअता
झौर मानवता के विकास के विरुद्ध नही थी | बल्कि दोतो परस्पर-
पीपक पर परस्पर-सहायक ये।
गाँवी जो राष्ट्रीयता को अपयी शिला-पद्धति वा मूलाधार नहीं
बनाना चाहते थे। उनये चोदह-सूत्रा रचनात्मका कायत्रम मे, या
प्राथना-सभा में नित्यपाठ किए थाने वाले ग्यारह सत्नो मे 'स्वदेशी'
को भी स्थान था, 'स्वभाषा' को भी स्थान था, 'स्वावलबन! पर
जोर धा--पर उन्होने यह कभी नही कहा कि मेरा ही राप्ट सबसे
श्रेष्ठतर है, भौर वाकी सब राष्ट्र पिछडें हुए या बुरे हैं| 'हिंद स्व-
राज्य” में उनवी पश्चिम की भालोचना तीव्र है, वहा ये इतिहास-
बारो को दोय वी पोल उहोने लोदी है। भारत वी प्रादीन भहा-
नता का भी वखान किया हैे। पर १६०४ वी उस रचना के बाद
उनके भ्रातिम दिनो के लेखो से तुलना वरने पर पता चलता है कि
राष्ट्रीयता के विषम म उनको घारणा बयबर वदलतो भौर मुधरती
गई। वे भनुभव से भौर सयाने होते यए। इसो कारण से प्रिटिद्यि
साप्नाज्यवाद से इतनी बडी लडाई लड़ते पर भी ब्रिटिश जनसाधा-
रुण वे प्रति उनके मन में कोई कंदुता यही थी ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...