युद्ध और मुक्ति | Yuddh Aur Mukti

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Yuddh Aur Mukti by मुनिश्री भद्रगुप्तविजयजी - Munishree Bhadrguptvijayji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र इस स्प्री के कारण स्वर्ग तुल्य यह लंका संकट के सागर में डूब जाएगी--लंका का अ्रधिपति पराक्रमी, होते हुए भी श्रीराम- ज्क्ष्मण से लंका बच सकेगी नहीं । अमात्य विचारमग्त हो गए | महामात्य बोले : स्वामित्र, इस विपय में हम क्‍या सलाह दें ? आप दीर्घ हप्टा, गंभीर और लंका का हित चाहने वाले हैं। हम तो नाम के ही मंत्री है। आप इस विकट परिस्थिति में से कोई मारे निकालें 7 बया करना ? लंकापति कामवद्ग हैं, इन्हें कोई सलाह देना व्यर्थ है । मिथ्या हृप्टि को जिनेश्वर का धर्म नहीं समझाया जाता “खैर, मुझे समाचार मिले हैं कि श्रीराम के पास सुग्रीब, हनुमान, बिराव श्ादि राजा लोग इब्ट्ट हुए हैं। सीता की खोज हो रही है। न्‍यायी महात्माश्रों का पक्ष कौन नले ? श्रीराम-लक्ष्मण सचमुच ही महान्‌ हैं। अकेले लक्ष्मण ने दड- कारण्प में खट विद्याघर के चौदह हजार सुभटों का घात किया ! वास्तव में, मुझे तो लगता है कि सीता के कारण राक्षस कुल का सर्वनाश हो जाएगा ” नहीं, स्वाभिनु ! आप कोई उपाय करे और लंका की रक्षा का उचित प्रवंध करे । आपकी वात ठीक है, परन्तु शस्त्र, अस्त्र, यंत्र या मंत्र द्वारा किया हुआ रक्षण पवित्रता और चारिश्य के श्राग्रे टिक नहीं सकता | श्रीराम के पास पवित्रता है, न्याय है, चारित्र्य है। इनकी सती स्त्रों का सतीत्व श्रीराम का अभेद्य कवच है। राक्षस सुमठ इस दुर्भेद्य कवच को भेद नहीं सकेंगे ।




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