ब्रह्मचर्य दर्शन | Brahamchrya Darshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
215
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आत्म शोधघन १६
गाँव में पहुँचेंगे, कहों से लाएँगे और फैसे साएँगेगीएँ गे ।
मगर गौतम जैसे आशज्ञाकारी शिष्य ऐसी भापा बोलने के
लिए नहीं थे। वे उसी समय उस किसान के पास पहुँचे । उन्होने
पृ्ला--/तुम्द्दरा क्या नाम है ! तुम्दारी यह क्या स्थिति है १”
किसान ने कहा--/तुम अपना काम क्रो और मुझे अपना
काम करने दो |!”
गौठम अवाऊ् थोडी देर खडे रद्दे। धूढा हिसान जमीन जीत
कर चलने लगा तो गौतम भी, नंगे पाँव उस जलती रेत में
खलने लगे। उसके पीछे-पीछे कदम बढाये गये ।
गौतम तिचारमग्न थे। आख़िर उन्दोंने कट्ठा-- अरे माई,
मेरी एक बात तो सुन लो 17
किसान बोला--“कट्दो, कया बात है ?”?
गौतम--घर में तुम झितने आदमी हो ?”?
फिसान--मैं अकेला राम हूँ और कोई नहीं है ।”
सौठम-- और मफान ९?
क्सिन--/एक पूस का छप्पर है। जब यह प्राय दो जाता
है तो जंगल से घास पात ले जाकर फिर ठीक कर लेता हूँ?
गौतम--“तुम इतने दिनों में भी सुस्ी नहीं दो सफे, तो इस
ढलतो उम्र में द्वी क्या सुस्ी दो समोगे (९?
किसान--“मेरे भाग्य में सुख है ही नहीं। यहुत-सी जिंदगी
धीत गई। थोडी और बाज़ी है, उसे भी यों द्वो तरिता दूँगा ।?
गौतम--/क्या दो रोटियों के लिए अपनी शेष अनमोल
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