निशीथ - सूत्रम भाग - 2 | Nishith Sutram Bhag - 2

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Nishith Sutram Bhag - 2 by कविरत्न उपाध्याय श्री अमरचन्द्र जी - Kaviratn Upadhyay Shri Amarchandra Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुत्र संख्या ०-८ ५० ५१ ५२ ५३ *४-५५ ५६ ५७ ९1 ५६. १-१५ १-४ धू --ण { ९ 3 विपय शय्या-संस्तारक परु षणतक के सिए लाये हए शय्या-सस्तारक को भ्रतिरिक्त काल तकं रखने का निषेध सचत्सरी के वाद दस रात्रि से अधिक समय तक शय्यासंस्तारक रखने का निपेघ वर्प मे मीगते हए शय्था-सस्तारक को उठा कर एक शभोर नं रखने से लगने वले दोप विना सागारिक की भ्रनुमति के प्रत्यर्पणीय शय्या-संस्तारकं एकं स्थान से दूसरे स्थाम पर ले जने का निषेध सागारिक के दय्या-संस्तारक को बिना श्रनुज्ञा के एक स्थान से दूसरे स्थान में बाहर ले जाने का निपेघ परत्यपंणीय शय्या-सस्तारक को बिनौ वापिस सौपे विहार करने का निषेध विद्ये हुए क्षग्या-संस्तारक को विना समेटे विहार करनै का निपेधे खोए गए शय्या-संस्तारक के न हू ढने प्रर लने वाले दोप बिना प्रतिलेखन उपधि रखते का निषेध उपधि-उपकरर के प्रकार जिनकत्पिक उपधिं स्थविरकट्पिक उपधिं उपधि की प्रतिलेखना एव तत्म्बन्धी दोप भ तृतीय उह शक द्वितीय तथा तृतीयं उद्‌ ्षक का सम्बन्ध ग्रागंतागार, भरारामायार, गृहेपतिक्कुल भ्रादिसे सम्बन्धित ्राहार झ्रागंतागार ( मुसाफिर खाना ) श्रादि में जोर-जोर से चिल्लाकर आहार मांगने का निपेघ, तत्सम्बन्धी दोष, झपबाद आदि झागतागार श्रादि में कौतुक के निमित्त आने वाले से प्राहार मागन कां निषेध, तस्सम्बन्धी दोप, श्रपवादं एव प्रायद्चित् गाथाङ्कु १२१७-१३८६ १२१७-१२४६३ १२४४-१२८० १२०८ १-१२०५६ १२०७-१२६६ १३००-१२०६ १३१०-१३१३ १३१४-१३०८६ १३८७-१३८६ १३९०-१३६४ १२३९५-१४१६ १४१७-१.४३७ १४३८ १४२३९-१४८१ १४३६१४४८ १,४४६९-१४५७ पृष्ठा १४९-१८७ १४६११५४ १५४-१६३ १६३-१६४ १६४-१६७ १६७ १६७-१६६ १६६-१७० १७०-१८७ १८७ 4 -1- १८८१८९६ १८६ १६३ १६३-१६७ १९६ १९९-२०९ १९९-२०१ २०१-१०३




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