सत्य - दर्शन | Saty - Darshan

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Saty - Darshan by कविरत्न उपाध्याय श्री अमरचन्द्र जी - Kaviratn Upadhyay Shri Amarchandra Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सत्य भगवान ( ७ काते है, वेदद्‌ मिन्नतें और खुशामद करते ह, धक्तामुकती दोती है. परन्त ईश्वर का चह उदार पुजारा मानों आँखें बन्द करके, नाक-भहि सिकोड्तां हुआ मार उन दद्रा पर्‌ घणा एव तिरस्कार बरसाता हुआ, अपने घर का रास्ता पकड़ता है । इस प्रकार जो पिता है. उसके लिए तो लाखों के मुकुट अपण किये जाएँगे, किन्तु उसके लाखों बेटों के लिए, जो पैसे-पैसे के लिए दर-दर झटकते फिरते हैं, छुछ भी नहीं किया जाता । उनके जीवन की समस्या कों हल करने के लिए तनिक भी उदारता नहीं दिखलाइई जाती | , - जनसाधारण के जीवन मे यह विसंगति आखिर क्यों और कहाँ से आई है ? आप विचार करेंगे तो मालूम होगा कि इस विसंगति के मूल में सत्य को स्थान न देना ही है। क्याजेन और. क्या अजेन, सभो अज बाहर की चीजों सें उत्तभ गये है । परिणाम-स्वरूप धूमधाम मचत्ती है, क्रियाकारड का आडम्बर किया जाता है, अमुक को प्रसन्न करने का प्रयास करिया जाता है, कभी भगवान को और कभी गुरुजी को रिकाने की चेष्टाएँ की जाती हैं, और ऐसा करने में दाजारों-लाखों पूरे हो जाते हैं । लेकिन आपका कोई साधर्मी भाई है, बह जीवन के कर््वञ्य के साथ जूक रहा है, उसे समय पर यदि थोड़ी-सी सहायता मी मिल-जाय, तो वह जीवन के मार्ग पर पहुँच सकता हे. और अपना तथा अपने. परिवार का. जोवन-निर्साण कर सकता हैं; किन्तु उसके लिए आप छुछ .भी नहीं करते ! ` तार्प्यं यह है किं जव तक्र सव्य को जीवन में नहीं उतारा जायगा, सही समाधान नहीं मिल सक्तेगा, जीवन में व्यापी हुई अनेक असंगतियाँ दूर नहीं की जा सकेंगी और सच्ची धर्म-साधना का फल भी प्राप्त: नदी किया जा सकेगा ।




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