ब्रह्मचर्य दर्शन | Brahamchrya Darshan

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Brahamchrya Darshan by कविरत्न उपाध्याय श्री अमरचन्द्र जी - Kaviratn Upadhyay Shri Amarchandra Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आत्म शोधघन १६ गाँव में पहुँचेंगे, कहों से लाएँगे और फैसे साएँगेगीएँ गे । मगर गौतम जैसे आशज्ञाकारी शिष्य ऐसी भापा बोलने के लिए नहीं थे। वे उसी समय उस किसान के पास पहुँचे । उन्होने पृ्ला--/तुम्द्दरा क्‍या नाम है ! तुम्दारी यह क्‍या स्थिति है १” किसान ने कहा--/तुम अपना काम क्रो और मुझे अपना काम करने दो |!” गौठम अवाऊ्‌ थोडी देर खडे रद्दे। धूढा हिसान जमीन जीत कर चलने लगा तो गौतम भी, नंगे पाँव उस जलती रेत में खलने लगे। उसके पीछे-पीछे कदम बढाये गये । गौतम तिचारमग्न थे। आख़िर उन्दोंने कट्ठा-- अरे माई, मेरी एक बात तो सुन लो 17 किसान बोला--“कट्दो, कया बात है ?”? गौतम--घर में तुम झितने आदमी हो ?”? फिसान--मैं अकेला राम हूँ और कोई नहीं है ।” सौठम-- और मफान ९? क्सिन--/एक पूस का छप्पर है। जब यह प्राय दो जाता है तो जंगल से घास पात ले जाकर फिर ठीक कर लेता हूँ? गौतम--“तुम इतने दिनों में भी सुस्ी नहीं दो सफे, तो इस ढलतो उम्र में द्वी क्या सुस्ी दो समोगे (९? किसान--“मेरे भाग्य में सुख है ही नहीं। यहुत-सी जिंदगी धीत गई। थोडी और बाज़ी है, उसे भी यों द्वो तरिता दूँगा ।? गौतम--/क्या दो रोटियों के लिए अपनी शेष अनमोल




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