कमूनिस | Kamunish

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Kamunish by शंकर बसु - Shankar Basu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कमूनिस 23 बीकू 'तो कया, योल पार्क की तरह एगशत स्वर्थोंड ायेया बस |” मन्टू मचानक सीघा होकर बैठ मया। आँछ्ष भौर मुँह में घाय की घिनपारी । बायें हाथ से माक की छोर शोर ठोड़ी घ पसीता पोछ सिया बाकई। ग्ोसपार्क की बाद याद है | ज्षाप्त झंडे को माँ-मौसी की गम्दी साप्तियाँ निकप्त यमी थीं । हिम्मत देख सब तार्जूब में आमये। अपने आप गहा हाँ सोता मे माँ का दूध पीया है। कांग्रेसी मस्तात लोग तीन हफ्ते शक मुइफ्से मं घुस मह्ठी पाय। अंत में क्षमा वरैरह माँगी ठभी म। बीर के मुंह से फुशमड़ी फूट रही है। हुए से एक तिरपास ईगी छारी सिकुल गयी। कसोदा के साथ सोना की पहले बहृत प्यार-दोस्ती रहौ है। रिश्ता भाज का हो महीं । बही सोना जब हाफ़पैट पहुनकर रेज की पटरियों पर पाँव रकते हुए स्कूल जाता था ठभी से केसोवा के छाप उसका माराना है। उप्ी बूते पर सुबह शाम चाय के बकत सोना क्षार समी दीबार पर पौठ टिका पाँग फैसाकर बैठा रहता पा। श्पामला पतली-इबली मीसू सोना के साथ चसकर एक दिस हम,ब रोड के मोतिया की डीबी के पास झागी | सोता मोदिया के साथ पोशर के कियारे बातचीत कर रहा था । वे दोनों कृत्म मे होते बाली बातों का सिलसिला जारी रखते हुए हगाकी ठरह बस्ती की पतली गली मे को एयीं । पोरा को तभी रूगा था 'बाह ' बहुत मच्छी है !” रुसने पीछे से नहीं पुकारा। उन दोनों की धृध्रसी छाम्ा मॉलों से मोप्तस हो दंगी | उसके बाइ एक दिन खिदिरिपुर के जुसूस में जाते हुए पहला मास” चार्ज करते से कुछ पहले प्तोसा ने कहा भा 'जागते हो मीमू पाँव जाना चाहती है|” हुए से एक जल्ारी तिकस गयी। “साला स्मगर्तिंग का माप्त 1? +तिरपाश्ष से इंका हुआ है इसलिए ! 'बिलकुण महीं [” _फिर ?




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