श्रीहरिवंशपुराण | Shri Harivansh Purana Saral Bhashanuvad Khand-1

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Shri Harivansh Purana Saral Bhashanuvad Khand-1 by पंडित श्रीराम शर्मा - Pandit Shriram Sharma

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जन्म:-

20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)

मृत्यु :-

2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत

अन्य नाम :-

श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी

आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |

गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत

पत्नी :- भगवती देवी शर्मा

श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(की) बोई चर्चा उसमें नहीं पाई जाती 1 इसी कमी वो पूदा वरने वे लिये थी घश' फी रघना वी गई है । इसके रचयिता 'महाभारत' ने पश्चात्‌ हुए थे । महाभारतकार मे पूर्ण श्रद्धा रखते थे, यह भी उनवी लेखनी से ही गिद्ध ३ है। प्रथ को आरम्भ बरते हुए वे वहते हैं--*- “भगवान व्यासजी वे मुखारविन्द से निवले हुए अदभुत, पवित्र, ' नाशक एवं सुखदायव' महाभारत” वो जो मनुष्य सुनता दवा उसे पुष्व रादि में स्नान करने की वया आवश्यकता है ? पराशर नन्‍्दन एवं सत्यवती के 4 को आनस्‍्द देने वाले उन भगवान व्यासदेव वी जय हो जिनवे पृष्य-मुखार से नि सृत क्थामृत का पान यह सम्पूर्ण विश्व करता है । जो मनुष्य स्वर्णम सीगो वाली सो गायें किसी बहुश्रुत एव वेदज्ञाता ब्राह्मण को दान देता है भ जो परम पवित्र महाभारत की कथा श्रवण करता है, तो उन दोनो का समान ही होता है ।” सभव है हरिवश का आरभिक रूप केवल 'महाभारत' के उपसहाएः “खिल' की तरह रहा हो, पर अन्य पुराणों की तरह कथावाचक विद्वानों! उसका भी विस्तार होता गया और वर्तेमात समय में पुराणों के ९ लक्षण--सर्ग, प्रतिसर्ग, वश, मन्दन्तर तया वशानुचरित उसमे अच्छे रू पाये जाते है 1 अदिसृष्टि का उद्भव, स्वायम्भुव मनु'तथा दक्ष से जगत नि। की प्रक्रिया का आरम्भ, पृथु द्वारा पृथ्वी पर मानव-सभ्यष्ता की स्थापता, स्वत मनु और उनका वश, सूर्य तथा चन्द्रवश का वर्णन आदि विषयों का पुराण मे उत्तम रूप से प्रतिपादन किया गया है । इतता ही नहीं इसका अध्य करने पर पाठकों को विदित होगा कि पुराण” होने पर भी इसमे वास्ता। तथ्यों के समावेश करने की अन्य पुशणों की अपेक्षा अधिक चेष्टा की गई इसीलिये हरिवशवर्ता ने एक स्थान पर इसे इतिहास समन्वित घोषित किया है उक्‍्ताय हरिवशस्ते पर्वाणि निखिलानि च। यथा पुरोवतानि तथा व्यास शिष्येणधीमता॥ तत्वथ्यमानाममितमितिहास--समन्वितम्‌ । प्रीणत्यस्मानमृतवत्सवे परापविनाशनम ॥ ६ ३-२०५,२ )




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