बृहत् कल्पसूत्रम भाग ४ | Brihat Kalpsootram Bhaag 4

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Brihat Kalpsootram Bhaag 4 by आत्मानन्द - Aatmanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३५९६-३६०२ ३६०३-९५ ३६०३-१५ ३६१६-४२ १६१६-३४ ३६१६ ३६१७-२४ ३६२५-३४ बृहत्कस्पसूत्र चतुर्थ विभागनों विषयानुक्रम | विषय निग्नेल्थ-निर्मेल्थीओने वाडानी बहार काढेछों सागा- रिकनो संस्ृष्ट पिण्ड लेवो कल्पे त्रीजा सागारिकपारिहारिकसूत्रनी व्याख्या त्रीजा सायारिकपारिहारिकसूत्रती विस्तृत व्याख्या १६ निग्रेन्थ-नि्नेन्धीविषयक चोथुं सागारिकपारिहारिक सूत् जै निम्न्थ अथवा निर्मन्‍्धी वाडानी वहार काढेला सागारिकना असंसृष्ट पिंडने संछष्ट करे अथवा तेमादे सन्‍्मति आपे तेने छगतुं प्रायश्रित्त चोथा सागारिकपारिहारिकपृत्रनी व्याख्या सागारिकना असंसृष्ट पिंडने संरृष्ट करवाथी अथवा तेमादे सम्मति आपवाथी छागता दोषों अने तेने अंगेनुं अपवादपद्‌ आह्ृतिका-निहंतिकाप्रकृत सूत्र १७-१८ १७ आहतिकासूत्र कोइने त्यांधी सागारिकने सादे भाणुं आच्युं होय तेने सागारिक के तो तेमांनो पिण्ड साधुने न कस्पे पण सागारिक ते भाणाने न ले तो तेमांनों अपातो पिण्ड साधघुने लेवो कल्पे आहतिका-निह्ेतिकाप्रकृतनो पूर्वसूत्र साथे संदष्टक नामनो सस्वन्ध आहतिकासूतच्रनी व्याख्या आहतिकानो अथे अने द्रव्य क्षेत्र काल अने भाव एम चार प्रकारनी आहतिकाजुं खरूप 'दृव्यत्तः अतिगरहीता न भावतः इसादि आहृति- काविषयक चतुर्भगी पेकी पहेला चोथा भंगरने लक्षीने अस्तुत सूत्र छे एस कह्देनार छोमी अने अजाण शिष्य प्रत्ले आचायेनों अत्युत्तर २३ पन्ने ९९९ ९९९-१००० १०० १-४ ३००३१ १००१--४ ६००४-१६ १००४-६९ १००४ 2००५ १००५-०७ १००७-०९




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