अंगा सुत्तानी २ | 1924 Anga Suttani-ii

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1924 Anga Suttani-ii by मुनि नथमल - Muni Nathmal

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मुनि नथमल जी का जन्म राजस्थान के झुंझुनूं जिले के टमकोर ग्राम में 1920 में हुआ उन्होने 1930 में अपनी 10वर्ष की अल्प आयु में उस समय के तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालुराम जी के कर कमलो से जैन भागवत दिक्षा ग्रहण की,उन्होने अणुव्रत,प्रेक्षाध्यान,जिवन विज्ञान आदि विषयों पर साहित्य का सर्जन किया।तेरापंथ घर्म संघ के नवमाचार्य आचार्य तुलसी के अंतरग सहयोगी के रुप में रहे एंव 1995 में उन्होने दशमाचार्य के रुप में सेवाएं दी,वे प्राकृत,संस्कृत आदि भाषाओं के पंडित के रुप में व उच्च कोटी के दार्शनिक के रुप में ख्याति अर्जित की।उनका स्वर्गवास 9 मई 2010 को राजस्थान के सरदारशहर कस्बे में हुआ।

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका ताम्करण प्रस्तुत आगम का नाम व्याख्याप्रज्ञप्ति है। प्रश्नोत्तर की शैली मे लिखा जाने वाला ग्रन्थ व्याख्याप्रज्ञप्ति कहलाता है। समवायाग और नन्‍्दी के अनुसार प्रस्तुत आगम मे छत्तीस हजार प्रइतो का व्याकरण है । तत्त्वार्थवात्तिक, पट्खण्डागमम और कसायपाहुड के अनुसार प्रस्तुत आगम में साठ हजार प्रश्नों का व्याकरण है ! प्रस्तुत आगम का वर्तमान आकार अन्य आग्रमो कौ अपेक्षा अधिक विशाल है। इसमे विपयवस्तु की विविधता है। सम्भवत विश्वविद्या की कोई भी ऐसी शाखा नही होगी जिसकी इसमे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप मे चर्चा न हो । उक्त दृष्टिकोण से इस आगम के प्रति अत्यन्त श्रद्धा का भाव रहा । फलत इसके नाम के साथ “भगवती विशेषण जुड गया, जैसे---भगवती व्याख्या- प्रज्ञप्ति | अनेक शताब्दियो पूर्व भगवती” विशेषण न रहकर स्वतस्त्र नाम हो गया। वर्तमान मे व्याख्याप्रज्ञप्ति की अपेक्षा भगवती नाम अधिक प्रचलित है । विषय-वस्तु प्रस्तुत आगम के विषय के सम्बन्ध में अनेक सूचनाएं मिलती है। समवायाग में बताया गया है कि अनेकों देवों, राजो और राजियों ने भगवान्‌ से विविध प्रकार के प्रश्न पूछे और भगवान्‌ ने विस्तार से उनका उत्तर दिया । इसमें स्वसमय, परसमय, जीव, अजीब, लोक और अलोक व्याख्यात है! । आचार्य अकलक के अनुसार प्रस्तुत आगम में जीव है या नही है--इस प्रकार के अनेक प्रइन निरूपित है । आचाय॑ वीरसेन के अनुसार प्रस्तुत आगम मे प्रश्नोत्तरो के साथ- साथ छियानवे हजार छिलच्छेद नयो' से ज्ञापनीय शुभ और अशुभ का वर्णन है' । १ समवाओ, सूत्र ६३; नदी, सूत्र ८५५ । २ तत्त्वाथेवात्तिक ११२०, षट्खण्डागम १, पृ० १०१, कसायपाहुड १, पृ० १२४५ । ३. समवाओ, सूत्र ६३। ४. तत्त्वाथवातिक १1२० । ५ जिस व्याख्या पद्धति मे प्रत्येक श्तोक और सूत्र की स्वतन्त्न, दूसरे श्लोको भर सूत्रों से निरपेक्ष व्याख्या की जाती है उस व्याख्यापद्धति का नाम छिलच्छेद तय है। ६ कसायपाहुड भाग १, पृ० १२५॥




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