चंदा हंदी रात | Chanda Handi Rate

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Chanda Handi Rate by सूर्यशंकर पारीक - Surya Shankar Pareek

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सावत कयो- 'अबक पाच दिना री छुट्टी पडण सू. कठेई गई परी हवला अर इंणने परा कठे ही स्‌ बुलायली हुब॒ला, मिनखा शरीर है कदे कदास काम परा पड ही जावे 17 सु दरी बोलो- हां, श्रा तो बान साची है । मिनख शरीर है, कद्ेई कोई काम धन्धो भी हुहि ज्याया करे ? ! ।.. इया लोग लुगाई पडी सुरता मे बतकाव हा। इतरे मे सु दरो बोली--“डे शी चाय बणावर मे ताछ घणो लगाईनी ।” /। “थारो नसी उतरम्यो दीसे 1” सावत बात पीवतो बोल्यों । 'नसो तो काई उतरग्यो पण ताछ छणो लगाबे जठे की खावण- पीवण रा सराजाम 1 सुदरी मन सू अ्रटकक लगावतो क्यो । “ता तू काई जाण है इस वेढ्ा चाय कोई लूखी थोडी हीज पावली ?” सावत श्राप री आ बात पूरी पण नी कर सक्‍यो हो *क जितर में सिशगारी थाई चाय शत दरें लिया बैठक में पथ रास्यो। इया अचाचूक री सिणकारी बाईन झाई देस'र सावत अचक वचकाईजगभ्यों, वो बाई ने देख'र बोल्यो - “बाई थाँ शो काई विमो, झाज थे वठ गया परा हा ? थे घर में कठाकर आया, घरी मोड मायकर ता थे पकायत ही नो आया, म्हे सामे ही तो वठा हा ।” सावत भक्त श्राग बोल्यी-- 'मह तो थाव॑ उडोकता उडाक्ता आखता हयग्या पण बापडी थारे भा बुण आयोडी है, म्हारो तो घणो ही ध्यान रारयो भ्रापार साथ चाय पीवण सार उणन पण बुलावातो सरो। म्हार झा तो थाई है शा




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