देव शास्त्र गुरुपूजा | Dev Shastra Gurupooja
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
28
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१)
सरणपब्बज्जामि || साहुसरण पब्बज्जास | कंवालपण्णताध-
इंपोसरण पब्बज्जास |॥
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आ नमो5हेलेस्वादहा ।
( यह कहकर पुष्पक्षेपणकर )
३
हर
उ अधै--येहीचारशरण हैं इनको में भाप्त दोताहू ( १) अरहंत (२)सिद्ध
३ (६) साधु ( 9 ) केवलीम्रणीत धर्म ॥|
3 अपावेत्र पवित्रोवा सुस्थितो दुःस्थितोपिवा ।
पंचनसस्कारंसव्वेपापः प्रमच्यते ॥
अधे-पवित्र हो अथवा अपवित्रहों सुखरूपहों वा दुःखरूपहो जो कोई पंच
। नभ्स्कार पदको ध्याता है उसके सव पाप छूटते हैं ॥
अपावित्रः परवित्रोवा सवावस्थांगतापवा ॥
; यःस्मरेत्परमात्मान सवाध्याभ्यन्तरेशुचिः ॥
£ अधथ-शुरर पवित्रहों वा अपाधप॑नरहां क्रिसी भा अवत्था म हो जा कोई
3 परमात्माका ध्यान करता है वह वाह्य ओर अभ्यन्तर सर्व॒भकार से
पवित्र ही है ॥
अपराजितमंत्रोय सवेविध्नाविनाशनः ।
संगलेषुचसब्बेंबु प्रथम मगलंमतः ॥
अथ-यह नमस्कार मेत्र ऐसा मत्रहे कि किसी मेत्र आदिक से नहीं जीता
3 जासक्ता है और यह मंत्र सवेभकार के विप्नका नाशकरने काला है ॥ सबे-
मंगल॒काय। में यह मन्त्र सबस उत्कृष्ट मंगल है ॥
1 एसोपचणमोयारों सब्बपापपणासणों।
: संगलाणंचसब्बास पढमहोद मगलस ॥
“ऐसा जो यह पंचनमस्कार मंत्रहे कह सवेपापों का नाश करने वाला
मेगलकार्यों में ओर से कार्यों में जिसके पढ़नमात्र से मंगल होता है ॥
अहमित्यक्षरंत्रत्म बाचकंपरमेणिनः
एरद्धचक्रस्यसद्दोज़ सवतःप्रणसान्यहस ॥
1 अथ -अई यह अक्षर परत्रह्मका वाचक है सिद्ध चक्रका बीज है और सबसे
उत्तम है म नमस्कार करता हू ॥
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