देव शास्त्र गुरुपूजा | Dev Shastra Gurupooja

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Dev Shastra Gurupooja by बाबू सूरजभानुजी वकील - Babu Surajbhanu jee Vakil

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१) सरणपब्बज्जामि || साहुसरण पब्बज्जास | कंवालपण्णताध- इंपोसरण पब्बज्जास |॥ स्ट््ज 3.32.52.22.5.2 322 2.3 0 & 0 & & & & & 8 & & & & 8 & ६ # | 8.0. & 8 8 £ & $ है 0 8 ॥ 8.0 £. 8, &44.4.2.4.98.09/# आ नमो5हेलेस्वादहा । ( यह कहकर पुष्पक्षेपणकर ) ३ हर उ अधै--येहीचारशरण हैं इनको में भाप्त दोताहू ( १) अरहंत (२)सिद्ध ३ (६) साधु ( 9 ) केवलीम्रणीत धर्म ॥| 3 अपावेत्र पवित्रोवा सुस्थितो दुःस्थितोपिवा । पंचनसस्कारंसव्वेपापः प्रमच्यते ॥ अधे-पवित्र हो अथवा अपवित्रहों सुखरूपहों वा दुःखरूपहो जो कोई पंच । नभ्स्कार पदको ध्याता है उसके सव पाप छूटते हैं ॥ अपावित्रः परवित्रोवा सवावस्थांगतापवा ॥ ; यःस्मरेत्परमात्मान सवाध्याभ्यन्तरेशुचिः ॥ £ अधथ-शुरर पवित्रहों वा अपाधप॑नरहां क्रिसी भा अवत्था म हो जा कोई 3 परमात्माका ध्यान करता है वह वाह्य ओर अभ्यन्तर सर्व॒भकार से पवित्र ही है ॥ अपराजितमंत्रोय सवेविध्नाविनाशनः । संगलेषुचसब्बेंबु प्रथम मगलंमतः ॥ अथ-यह नमस्कार मेत्र ऐसा मत्रहे कि किसी मेत्र आदिक से नहीं जीता 3 जासक्ता है और यह मंत्र सवेभकार के विप्नका नाशकरने काला है ॥ सबे- मंगल॒काय। में यह मन्त्र सबस उत्कृष्ट मंगल है ॥ 1 एसोपचणमोयारों सब्बपापपणासणों। : संगलाणंचसब्बास पढमहोद मगलस ॥ “ऐसा जो यह पंचनमस्कार मंत्रहे कह सवेपापों का नाश करने वाला मेगलकार्यों में ओर से कार्यों में जिसके पढ़नमात्र से मंगल होता है ॥ अहमित्यक्षरंत्रत्म बाचकंपरमेणिनः एरद्धचक्रस्यसद्दोज़ सवतःप्रणसान्यहस ॥ 1 अथ -अई यह अक्षर परत्रह्मका वाचक है सिद्ध चक्रका बीज है और सबसे उत्तम है म नमस्कार करता हू ॥ 4फप््फक्पप्पपकफ जप फ पक प रुप क्र जक रु एक + रूप उ उक्७क जत्त्प उत्तर परत प पर ७ रर सुपर फ च २9




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