वायु - पुराण भाग - 2 | Vayu Puran Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
495
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जन्म:-
20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)
मृत्यु :-
2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत
अन्य नाम :-
श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी
आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |
गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत
पत्नी :- भगवती देवी शर्मा
श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| [ वायु-पुराण
और युगो का तिवर्चन इस क्रम के योग से कत्प तथा सन्वन्तर प्रज्ञाप्रो के साप
सैकडो ही तथा हजारो ही व्यतीत हो चुवे हैं ॥1१३५॥ मन्वन्तर के अन्त ये
सहार और सहार के प्रन्त मे जन्म देवों का-ऋषियो का-मनुका और पितृण
का होता रहेता है ॥11३६॥ झानुपूर्दी से सो वर्षों मे भी इस तिसग का विस्तार
झौर सव सहार बताया नहीं जा सकता है। मन्वतर की सख्या तो मानुप से
जान लो ॥!१३छ॥ प्र्ध-विशारदो ने देवो तथा ऋषियो की सस्या तीम्र करोड
सम्पुणरा द्विगो के द्वारा सख्या से सख्यात की गई है ॥१३८॥ प्रधिक्तों को छोड
कर यह काल सख्या से सडसठ नियुत बीस सहश्न होता है ॥१३६।॥ मन्वन्तर की
यह सख्या मानुप के द्वारा कही गई है। प्रव दिव्य वत्सर से मनुक्ा जो भरतर
होता है उसे कहूँगा ॥ (४०॥॥
अष्टो शतसह॒ल्ारि दिव्यया सल्लभया स्मृतम् ।
द्विपज्चाशत्तथान्याति सहस्लाण्य घिकानि तु ॥१४९
चतुद्दं दगुणों हयांप काल आहूतसप्लव ।
पूर्ण बुगतहस्र स्थात्तदद़्व हाए स्मृतव् 1१४२
तन्न सर्वारि भूतानि दग्धान्यादित्यरश्मिभि ।
ब्रह्माण मग्रत कृत्वा सह देवपिदानव !
प्रविशन्ति सुरक्ष धव देवदेव महेश्धरस् ॥ १४३
से स॒ष्टा सर्वेभूतानि कल्पादिपु पुन पुन 1
इत्येप ह्थितिकालो वे मनोदेंवपिमि सह ॥१४४
सर्वमन्वन्तरारा व॑ प्रतिसन्धि निवोचत्त ।
मुगाख्या या समुद्ष्दा प्रागेवास्मिदु मया तव ॥ १४४५
इृतब्रेतादि संयुक्त चतुयु गमिति स्मृतम् +
तदेक्सप्ततिगुण परिवृत्त तु साधिक्मु )
मनोरेक्मधीकार ऐशेवाच भगवान श्रमु 1१४६
दिव्य सम्या से प्रादयी सहस बचाया यया है । तथा इगसें दो पचागतु
सहश्न भधिक होता है ॥१४१॥ भाटूत सष्चव यह ममय चौदह गुणा होता है ।
« पूरा एक सहस्र युग दह्मा का पूरा दिव हुआ करता है, ऐसा बकयगा या
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