महात्मा अरविन्द घोष | Mahatma Aravind Ghosh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
106
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धर्मशिक्षा और अरचिन्द श्ध
और, लैसांरके मेडूलकें लिये है। पतितोंका' उद्धांर करनैके
लिये दी--इस पतित जातिकी संवाद्वीन उन्नति फरनेके ल्यिं ही
चे खेंपनी साधनाकी फार्येरपर्म पेरिणंत करनेके लिये प्याऊुंलताके
साथ इसे भानवे-ढुले में अपने दशकों इसो जीउनमें सकल
कर रहें हैं। साधनामें सफलता मिलनेपंए फिर कर्मग्रीर
अरविन्द फर्मक्षेत्रमें अयतीर्ण होंगे। ”! !
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शक्ति और पूर्ण आनन्न्दका 'मानवम्जीवनमें
भर विकाश »फरनेके लिये'द्ी “इन्होंने यह शत
धोरण किया है. । दमलोंग' हिन्दू 'होकर भी दिन्दू धम्मेका सममा-
मेक प्रयत्ष नदी करते, इसोडिये उन्होंने कई यार इस बातका
आद्वैप क्रिया दै। आपका कहना है “सत्र फोई'कहते है, सि चेद
ट्िन्टूँधम्मकी प्रतिष्ठा है, परन्तु 'जुत थोड़े आदमी उसे प्रतिष्ठा फै
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