श्रीमद भागवत गीता | Srimad Bhagwat Geeta
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11.56 MB
कुल पष्ठ :
172
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अथम सचध्याय रह विवि वि वि देव अर दि अधि वि की व कि अं अब या अति दि बंध अं वध दि बिल ि ि दपिरेतै कु रुघ्नानां व्णेसइ्रकारके । च हल ्त उत्साधन्ते जातिघमा झठथमोश्च शाइवता ॥४२। कुछनाश करनेवालोंके इन वणसडुर उत्पन्न करनेवाले दोषोंसे प्राचीन जातिघम्मों और कुछघम्मका भी नाश होता है। उत्सनकघमाणां मनुध्याणां जनादन | नरके नियत वासो भवतीत्यनुज्चुअम 1४४॥ दे जनादंत बराबर सुनते आये हैं कि जिनका कुलघश्म नष्ट हो गया है उनको अवश्य ही नरकमें जाना पडता है | अहों बत मदत्पाप॑ कतु व्यवसिता वयम् । यद्राज्यसुखलों मेन हर्तु खजनपुच्चता ॥४५॥। हाय . राज्य सुखके लोससे हमलोग अपने स्वजनों को मारनेका महत्पाप करनेके छिये भी तैयार हो गये यादि मामप्रतीकफारमणस्र शस्त्रपाणय घातराष्ट्रा रण हन्युस्तन्म क्षेमतर भवेत् ॥ ४६ यदि मैं हाथमें शख्र न ल॒ भर आधामण करनेवालॉको न रोकू तथा शख्घारी शत्रु आकर मु मार डालें तो उससे. मेरा अधिक क्रदपाण होगा । मज्ञय उवाच शत ७० ७ हर एवपुकत्याजुन सख्ये रथोपस्थ उपाधिश्त् । विसृज्य सर चाप॑ शोकसार्वम्रमानस ॥४७)। यह कहकर अर्जनने हाथसे धनुष बाण फेंक दिया भौर अत्यन्त दु खित होकर रथपर बेठ गया | इति श्रीमद्भगवदगीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्याया योगशासरे श्राकृष्णार्जुनसवादेघजुनविषाटयोगों नाम प्रथमो5 याय ।
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