ओटक्कुषल् | Otakkushal

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Otakkushal by शंकर कुरूप - Shankar Kuroop

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घॉसुरी सीसा भाव से जीवित गीतों का यानेवाले लिया और काल की सीमाआ से निव व हैं महामहिमासय में जनमा था अवात-अपरिचित कही मिट्टी में पडे-पड़े नष्ट हो जाने के लिए किल्तु तेरी वे मवशालिती दया ने मूझे बना दिया है बायुरी चराचर का आनन्दित करने वाली । तूने अपनी सास की फूक से उत्पन बार दी है ध्राणा वी सिंदरन इस नि.मार सोखली नती में भन का सगन कर देनेवाले अखिल विश्व वे' मनाते गायवा | तू ही ता है जा मेरे अन्दर गीत बनकर वसा है अन्यया क्या विश्तात थी इस वुच्छ जड वस्थु की किचित्‌ मां कर सकती राग-्मालाए इस अद्ार हर्पोत्तास से मरवर 1 मन्द-हास का मतोरम नवल घबल पन प्रेम प्रवाट वी क्लकत मदर घ्वनि मानव बहार की उद्यम लहरा का उछात, अय्ुसितत नेत्रा व नोले कमल, दाय-दारिदय के दर्षावालीन मेंघा वी काली छामा, सासारिक पाए दे मेंबर-जाप “न सब का साय लिये लिय वहती रहें मेरे अ>र की सपीत-वल्लालिती बह सरिता है प्रमु। ओटबककुबदर




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