एक और नचिकेता | Ek Aur Nachiketa

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Ek Aur Nachiketa by शंकर कुरूप - Shankar Kuroop

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जो बुरो त्तरह से घुन गये थे । अगर मैं उठ सकता ता रग रगकर आगे बढता, हाथ! वह हाथ, जो इस बूढे को सहारा दे सकता थी यूढा शिल्मों सिसक पडा | (शायद उस स्मरण को मिटाने के लिए पोहने लगा सूखे हाथो से झुरियों भरा अपना ललाट) अब में कुछ भी कर नहो सकता, फिर भी अगर रेंगता-लेगडाता अपनी शित्पशाला म जा बैठ पाता, तो निश्चय ही मे अपना छेदी और नपेनो का आनन्द लूटता | आकाश में लट्के औध चपक के समान हैं यहू त्ञाम्र कलश मण्डित मनोहर मदर, काली छकडो मे से उकेरा गया जिसे अपने हाथो बनाया था मेने ) जौर उन हाथो से जिह मेंने स्वय छेनी पकडना पियलछाया, मेरे बच्चे ने उत्बोण किया, सुनह॒छे समुतत ध्वजस्तम्भ के ऊपर गरुड, कैसा उडता हुआ सा बैठा-- लगता है ज्या उसके पे अब भी चचल हैं 1 कहते हँ-मेंने उससे ईप्या वी ! भला, यह बैसी बात | किस पिता का मन गव से पूल नही जायेगा, पुत्र वी प्रशसा सुतवर २ हम बाँध सकते हैं हजारा घण्टो को जिह्नाएँ बूटा शिक्पो




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