काव्य और कला तथा अन्य निबंध | Kavya Aur Kala Tatha Anya Nibandh

Kavya Aur Kala Tatha Anya Nibandh by जयशंकर प्रसाद - jayshankar prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ५ )) के प्रेय में परोक्ष रूप से श्रेय निदित है। काव्य की व्याख्या में उन्होंने कहा है कि काव्य को संकल्पात्मक मूल अनुभूति कहने से मेरा जो तात्पय है उसे सी समझा लेना होगा । आत्मा की सननशक्ति की वह असाधारण अजस्था जो श्रेय सप्य को उसके मूल चारुत में सहसा म्रदश कर लेती है काव्य में संकरपात्मक मूल अल्लुभूति कही जा सकती है. । इस श्रकार सूते और अगूतें की हिविंधा हटा कर असादजी ने श्रेय ओर भ्रेय के कड़े को सी साफ कर दिया है। इसका यह झाशय नहीं कि थे काव्य और शाख में कोई धंतर नहीं मानते । उन्होंने न केवल इनका व्यावहारिक अंतर माना है आचीन शारत की शिक्षा पद्धति का भी विवरण दिया है जिसमें इन दोनों विषयों की शिक्षा प्रथक-प्रथक दो केन्द्रों में दी जाती थी । शास्त्रीय व्यापार के संबंध में असाद जी स्वयं कहते हैं सन संकरप और विकल्पास्मक है । विकल्प विचार की परीक्षा करता है । तकें वितकं कर लेने पर भी किसी संकल्पात्सक प्रेरणा के ही द्वारा जो सिद्धान्त बनता है वही शास्रीय व्यापार है। अजुभूतियों की परीक्षा करने के कारण शऔर इसके द्वारा बिश्लेषणात्मक होते-दोते उसमें चारुत्व की प्रेय की कमी छो जाती है । फिन्तु काब्य को आत्मा की संकल्पात्मक अनुभूति मान लेगे च्यौर संफ्रर्पात्मक लुशूति की उपयुक्त व्याख्या कर देने भर से समस्या का समाधान नहीं होता बल्कि यहीं से शंकाएँ झारंभ होती हैं । सब से प्रदली शंका प्रसाद जी ने स्वर्य उठाई है और




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