कला और संस्कृत तथा अन्य निबंध | Kala Aur Sanskrit Tatha Anya Nibandh

Kala Aur Sanskrit Tatha Anya Nibandh by विश्वनाथ शुक्ल - Vishwanath Shukla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शुद्धादत में ब्रह्म में बेषस्य-तेघ ण्य (पक्षयात और निदेयता) दोष-निरसन श्री महाप्रभु बल्लभावायें जी के प्रन्यी में ऐसी आाख्यायिका का उल्लेख स्वयं उनके द्वारा हुआ है कि जब श्री शंकराचार्य ने यहर्षि कृष्ण दे पायन ब्यास के बह्मामूवों से मायावाद का आविष्कार किया हो व्यास जी को बहुत क्रोध आया आर उन्होंने शगवदंवदनवेश्वानरावतार श्री वल्लभाचार्य जी को बह्दासूत्रों का यथाथं अभिप्राय प्रकट करने का आदेश दिया । बह्मासूत्रों की यथायें ब्याइया ही श्री वल्लभाचार्व जी को परम बैदुष्यमय प्रस्थरत्त 'अग- साष्य' है | गाचायें वल्लभ वेदे, ब्रह्मसूत्र, भीता भर श्रीमदुभागवत को अपने दाशें' निकमत 'शुद्धाइत' और उपासना-पद्धति “पुष्टिमार्य' के लिए परम प्रसाण (प्रस्थान चतुष्टय) मान ते हैं । वे इनके सुख कथ्य में किसी प्रकार की खींचतान, तक-कुतकं, वाद-चिवाद के नितान्त विद्द्ध हैं ? उनको यह पद्धति बिलकुल मान्य चही कि कोई दा्शंतिक पहले अपने स्वतत्र तरक॑ से अपना कोई मत स्थापित करे और फिर येन केन प्रकारेण श्रुति-स्मुतियों के वचनों से उनका समर्थन करे । आचाये चहनभ शरुतिस्मूतति के सुख्यअर्थ--अभिधेयाथ को स्वीकार करते है और लक्षणा-व्यजना का हस्तक्षेप श्रुति के बचचतों में नहीं चाहते । भाचार्य ने कपने ग्रस्थों में अपनी इस अरतिज्ञा का पुरा-पूरा पालव किया. है ! इस अकार उनके द्वारा प्राचीत बेंदिक परस्परा का सरक्षण हुआ है । थूति और मूल ब्रह्मयूपों के माधपर पर ही आचायें ने अपने दार्शनिक सिंद्धास्त--शुद्धाइं तवादे को संघटन किया है जिसके प्रमुख घटकों में ब्रह्मा की संबेधर्मवत्ता, विरुद्वसर्व+ घर्मापयत्व, सबूत त्व, बंषस्य-नैधुण्य दोष राहित्य, जीव प्रह्मअभेद, भविकृत 'परिणामबाद, आिभावतिरोभाववाद, जगतुसत्यत्व, जगदृ-संसारसदादि है । इनमें से आचार्य द्वारा प्रतिपादित ब्रह्म का वेफम्यननैु प्य दोष राहित्य लोक को व्यामोहित कर देने वाला सिद्धान्त है जिसका रुपफष्टीकरण आवश्यक है 'बैषम्य' का अयें है विषमता था पक्षपात भौर 'मिधुण्य” का अर्थ है निचू णता, निर्देधता या शूरता । ब्रह्म में जीव-जगतु के प्रति न किसी प्रकार का पट्नपात है और न किसी प्रकार की क्रूरता । आचार्य ते यट सिद्धान्त मुत्त




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