हिंदी - काव्य में मानव तथा प्रकृति | Hindi Kavya Me Manav Tatha Prakrit

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Hindi Kavya Me Manav Tatha Prakrit by लालता प्रसाद - Lalta Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम अध्याय व्सय-प्रच्ेखा मानव तथा प्रकृति विषयक विभिन्न दृष्टिकोण मानव तथा प्रकृति के आदिं मूल, स्वरूप, भेदाभेद, पारस्परिक सम्बन्धो की यथाथता-अयथाथंता तथा ददयमान रूपों की सत्यता-असत्यता के प्रश्नों पर विज्ञान, दशन तथा साहित्य मेँ अनेक प्रकार से विचार किया जाता है । अतः हिन्दी-काव्य में मानव तथा प्रकृति के विवेचन के पूवं उनके विषयमे उक्त बातों से सम्बन्धित सम्यक्‌ जानकारी के लिये विज्ञान, दशन तथा साहित्यादि के इष्टि-विन्दओं को समझना आवश्यक है। उनके विषय में उठने वाले विभिन्न प्रश्नों का समाधान वैज्ञानिक, दाशनिक तथा साहित्यकार किस प्रकार करते हैं, इसके लिये हम सब- प्रथम उनके विभिन्न इष्टि-विन्दुओं से विचार करेंगे । (ক্স) वैज्ञानिक दृष्टिकोण (के ) प्रारि-विज्नन--प्राणि-विज्ञान के अनुसार मानव तथा प्रकृति मेँ कुछ इष्टि-विन्दुओं से साम्य है और कुछ इष्टि-बिन्दुओं से वषम्य । जहाँ तक साम्य का प्रइन है, मानव तथा प्रकृति के प्राणी दोनों ही सूयं से जीवन-शक्ति प्राप्र करते हैं दोनों ही काबन, हाइडोजन, आक्सीजन, तादइटोजन, गंधक, फासफोरस, क्लोरीन, सोडियम, पोटेशियम, कंलशियम, मेगनेशियम तया लोह आदि प्रकृति के विभिन्न तत्वों के संघात है ; दोनों ही उक्त तत्वों के संघटन से जीवन ओौर विघटन से मत्य को प्राप्त होते हैं ; दोनों ही वनस्पति-जगत्‌ हारा निष्कासित आक्सीजन को इवास- रूप में ग्रहण करते हैं; दोनों ही क्षुधा, तृषा, प्रेम, क्रोधः भय आदि का अनुभव करते हैं ; दोनों ही प्रजनन-शक्ति द्वारा वंश-वृद्धि करते हैं और दोनों ही में बद्धि- क्षमता, दवसन्‌-क्रिया तया भोजन के अन्तग्रंहण, पाचन, प्रचूषण एवं उसके अपचांश के बहिष्करण की विशेषताएँ हैं! । १, प्राशि-विज्ञान, आर० डी० विद्यार्थी, भाग २, पृ० १-१२।




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