पंडितराज जगनाथ के रसगंगाधर भाग -१ | Rasagangadhar Of Panditraj Jaganath Part-1

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Rasagangadhar Of Panditraj Jaganath Part-1 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना १७ प्राप्ति केसे होगी इस प्रसज्ञ में बहुत सी थुक्तियां भी बतलाई हैं, उन युक्तियों के द्वारा उन्दींने यद सिद्ध करने की चेष्टा की है कि ये प्रयोनन काव्य के निर्माता और शध्येता दोनों के लिये बरावर हैं । पण्डितराज ने काव्य-प्रयोजन के रंबन्ध में केवल एक पंक्ति लिखी है, जिसमें यश, परम आनद और गुरु, राजा तथा देवता आदि वी प्रसन्नता ये काव्य-प्रयोजन वतलाये गये हैं, ये सभी प्रयोजन काव्य-नि्माण के दी हो सकते हैं, काव्याध्ययन के नहीं । यह बात दूसरी है कि इन प्रयोजनों की सिद्धि के लिये लोगों की :प्रबृत्ति काव्य-निर्माण की ओर होगी और काव्य के निर्माण के लिये उसका मध्ययन भावरयक होगा । वस्तुतः इन प्रयोजनों का उल्लेख लोगों को काव्य के निर्माण और अध्ययन की दिला में प्रदृत्त कराने के लिये उस प्रकार का एक प्ररोचक उपायमात्र है, लिस तर का विक्रेताओं का सीपी के चमकौले ठकडों के विषय में क्रेताओं के प्रति यद कथन होता है कि “बडे भच्छे मोती है, जरूर खरोद लौजिये” । परमार्थेत' काव्य का प्रयोजन रसास्वाद-मूल्क आनन्दातिशय ही है। यधपि लोग कीर्ति आदि ने लिये मी काव्य-निर्माण करते ही हैं तथा नीविका भादि के लिये भी काव्य पढ़ते ही हैं, तयापि वे सब काव्य के भअनन्य साधारण प्रयोजन नददीं दो सकते, क्यों कि कीर्ति मादि के लिये अनेक रास्ते हैं और जीविका लादि के लिये भी विविध उपाय किये जा सकते हैं । इन सब गोंण प्रयोजनों को लक्ष्य बनाकर काव्य का ल्खिना-पढना सर्वथा सफल मी नहीं दोतता । कइने का अभिप्राय है कि रसारवाद करने कराने के लिये ल्खि गया काव्य दी पूर्ण सफल हो सकता है, एवम्‌ रसास्वाद के लिये किया गया काव्य! ध्ययन दी वास्तविक अध्ययन कद्दा जा सकता हैं । काव्य काव्य पदार्थ का विवेदन करने से पूव॑ कवि शब्दाथ का विचार कर लेना आवश्यक है, क्योंकि व्याकरण के अनुसार काव्य पद का अथे होता है कवि का कम ” अतः कविशब्दा्थ का ज्ञान दिना कराये काव्यपदार्थ का ज्ञान नह्दीं कराया जा सकता । अच्छा, तो इम पहले यद्दी विचार करें कि कवि किसे कदते हैं ? शब्द-स्वारस्य के भनुसार किसी वस्तु के वण्न करने वाले को कवि कहते हैं क्योंकि काव्यमीमांसा में कट वर्णे” धातु ते कवि पद की सिद्धि मानी गई है । कुछ लोगों का कथन है कि कद वर्ण” धातु से कवि शब्द सिद्ध नहीं दो सकता क्योंकि वदद पवर्गीयोपध है, अतः कुछ शाब्दे” धातु से कविपद की सिद्ध करनी चाहिये । यदि यही व्युत्पत्ति ठीक हो, तथापि भर्थ में कोई अधिक अन्तर नहीं दोता क्योंकि तदनुप्तार भी किसी विषय का कहने वाला दी कवि पद का अयथे होता हें । कोष में कषि पद का भ्थ पण्डित किया गया है । अत. योग तथा रूढि दोनों की समन्वयात्मक दृष्टि से १, 'कौतिपरमाहादगुरुराजदेवताप्रसादाधनेकप्रयोजनकरय काव्यस्य इत्यादि” (इ ८) । २. 'गुणवचनवाह्मणादिस्य- कमंणि च” इतिं ष्यजू । 5, 'कविशब्दश्व कद वर्ण इत्यस्य घातोः काव्यक्मणो रूपसू” ( काव्यमीमांसा ) । ४. 'संख्यावान्‌ पण्डित: कविः ( भमर ) २ र० प्र० भू०




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