आग की लकीर | Aag Ki Lakir
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
160
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कुछ देर तक नन््दा के कानों में भझत-को खामोश्ी छाई रही। न
भाषा कमरे से बाहर झाए, न नन््दा उनके मुँह का वदलता हुमा रंग
देख सकी | फिर उनकी आवाज़ भाई--नन्दा, माँ को झरा इधर
भेज दो ।/
नन्दा ने देखा--लाज जब उनके कमरे में गई तो कमरे का खुला
हुमा दरवाजा भीतर से भेड दिया गया । बन्दा भ्रनुप्तान लगा रही
थी--कि पापा उस खुशी की बात सबसे पहले लाज वीवो से कर रहे
ये जो उन्होंने श्राज वडे महँगे दामों खरीदी थी***
काफी देर वाद दरवाज्ञा खुला। लाज वीबी वाहर आई। नन््दा
उनके चेहरे की तरफ किसी उत्साह से नहीं देसना चाहती थी, बह
इतना पूछ सकी--“वी जी, फ्रीज्र मे कीमा पड़ा हुआ है कवाव वना
दूँ?
. लाज बीबी भीगी हुई ग्रांसों से मुस्करा रही थी । उन्होंने घीरेन्से
हाँ में सिर हिला दिया, और फिर, सन में झाया हुआ उबाल जैसे
अकेले उनके मन से झेला न गया हो, कहा--“बना लो, तुम्हारे पापा
को अच्छे लगते हैं “तुम्हारे पापा'**” लाज बीबी की भावाय मे एक
उदास-शी खुशी थी “मैंमे किसी रूगवानु को तो देसा नही, पर वह
जरूर तेरे पापा जता होगा 17
श्रव नन््द/ के पास लाज बीवी के मुँह की तरफ़ देखने का, भौर
देखे जाते का, एक स्वाभाविक अवसर था, सो वह मुँह की तरफ
देसती रही । लाज बीवी का मुह युध भी था, और संजीदा भी, शायद
कुछ उदास मी ***
नन्दा जुगशी में मिली हुई उदाम्ती को पहचान रही थी--शायद
इसलिए कि बहू खत को पढ़ चुकी धी--नही तो झायद वह खुशी श्रौर
उदासी के इस मेल को पहचान गे पाती***
भ्रव कुछ पूछ सकना मी स्वाभाविक था, पर नन्दा को कुछ सुझ
नहीं रहा धा। लाज बीवी ने स्वयं ही उत्की कुछ पूछती-सी नजरों
को समर लिया, भोर हथेली से उसके गाल को दुलार कर कहा,
हे. »॥ 3 >ओ+ -सिननन शनि काश नाप्ज आरी सयमा में नहीं झा
तू बहुत बड़ी
है। जाएगा
भौर नन्दा अनजान उम्र के इलज्ञाम की कूल कर वक्त के सवाल
से जैंते छूट-सी गई!
रह
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