वादमाला | Vadamala

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Vadamala by श्री यशोविजयजी - Shree Yashovijay ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सलचज स्त श्री यश्योविजयजी महाराज के उद्गार ; -+> स्वागमेजन्यागमार्थाना शतस्येव पराथ्यके । नावताखुधत्व चेतू ? न तदा ज्ञानगर्भता ॥ अध्यात्मसार (६/३६) परार्ध (उत्कृष्ट सख्या) में १०० सख्या के समावेश की भाँति जैनागम में अन्य दर्शन के शास्रार्थो के उचित समावेश की कुद्मलता नही है, तब ज्ञानगर्मित वैराग्य नाममुकिन है ॥ ग्रन्थदरीर परिचय प्रकाशकीय हर्पोद्मार ग्रन्थप्रवेश के पूर्व किखित्‌ 4 विषय मार्गदरिका प्रस्तुत प्रकरण ० टीकाकारीय प्रदास्ति १९९ परिशिष्ट १/२/३ प्रथम आवृति विस. २०४९ _नोध : अभ्यासु जैनसाधु-साध्वीजी महाराज को भेट मिल सकेगी ।] सर्वाधिकार श्रमणप्रधान श्री जैनसघ को स्वायत्त प्रकाशक प्राप्तिस्थान दिव्यर्द्धान टुस्ट १ प्रकाशक ३६, कलिकुड सोसायटी २ भरतभाई चतुरदास श्ञाह, धोलका कालुशी पोल, 21 + 387 810 कालुपुर, अमदाबाद - ३८० ००१ - लेसर टाईपसेटीग :- पार्य क्रोग्पयुर्र्स; २३, जनपथ सोसायटी; केनाल के प्रास, इसनपुर रोड; घोडासर, अमरदाब्राद - ५० दूृर्भाप ४ ३९६२४६




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