उत्कीर्णलेख - पञ्चकम | Utkirnalekhapanchakam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १६ ) के लिए वन्य काय॑ भी ढूँने पडे 1 यघा--सध्ययुगीन-प्रश्स्ति में उनके पोरोहिद, मन्दवित्व ठया सेनापठित्व वा भो उल्लेख बाया है 1 आपत्ति या परिस्पितिन्द+ वे जीविका के लिए देशान्वर भी जाते थे । क्षत्रिय--साववी सदी से शासन सम्बन्धी अभिलेखों में क्षत्रियों का नान बाता है जो राजनीतिक परिस्थिति-द् समाज में अग्रणी हो ग्रये घे। पूर्वे- भध्ययुग मे क्त्रियों वे लिए 'राजपूत' शब्द का प्रयोग मिलता है जितका निवास स्थान राजपुताना दताया गया है। “राजपूत” की उत्तत्ति के विषय में हन विग्रहराज के अमिछेख विवेदन प्रठय में स्रविस्तार विचार करेंगे। राजपूद नरेशों का अभिलेख उन्ह प्राचीन क्षत्रिय-वर्ग का वशज सिद्ध करता है। उस यु में राजपूत भी दो वर्गों म विभक्त हो पये चे-- ( १) शासक वर्ग तथा ( २) साधारण क्षत्रिय वर्ग । शासकों की श्रेणी में बुछ हृथ प्रभ्ृति विदेशों भी घुस आए थे, जिनका वैवाहिक सम्बन्ध राजधराने से हो गया था । क्छचुरी-लेख में इसका संकेत है । राजकीय अमिरेखों वा अध्ययन यह स्पष्ट कर देठा है कि सातवों सदी से १६ वी सद्दी तक राजदुमार को दुशलछ शासक दनाने वे छिए समुचित शिक्षा दी जाती पो । मालवा के एक चहमान-लेख में तथा प्रतिहार-लेस में इसका उल्लेख है। साराश यह है कि र॒माज में क्षत्रिय-वर्ध का शिक्षित्र या सफल धासक होने के कारण आदर या और वे समाज के रक्तरु भी ये । वैश्य--स्मृठिकारी का अनुसार देश्य का स्पान सृतोय जाति में था ओर उनका काम पशु-पाल़त तया कृषि था। गुप्त-युग के परवर्ती अमिलेखों मे दान के प्रसंग में कृषि, वर, पशु तथा व्यापारिक चुज्ली का वर्षन आया है 1 वधिर भब्द वा प्रयोग वैश्यन्वां के रहिए प्राय सर्वेत्र लेघों मे पाया जाता है, जिसका उल्लेख परमार चामुण्ड राय के लेख तथा चहमान-हेख में मिलता है । इस प्रकार यह जाति व्यापार से नो झपनो जीवित चछाती थो। वषिकू-समूह वा एक वर्ग बैंक का भो काम करठा या, जिसका सकेत नामिक्न्लेख में है 1 ब्यपरार के अनुसार बिक श्रेषियों मे विमक्त से। स्थानीय व्यापारी घोड़े या बैछपादो कै माध्यम से व्यापार करते ये और विदेशों में व्यापार बरने वाले सायंवाह बहलाते ये । शूद्र--दर्भ॑ व्यवस्था में शूदों को अन्तिम स्थान मिछा है दया उसका धर्म ट्विजाँठि मात्र को झेवा था किन्तु अमिलेखों मे इनका स्थान उतना हीत नहों




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