कामायनी - अनुशीलन | Kamayani - Anusheelan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
252
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| ४ ै|
प्राचीमता एवं नवीनता के सम्रह तथा त्याग के य्िपय में मालविकाश़ि-
मित्र नायक की प्रस्तावना मे कालिदास ने जो कुछ कहा हैं वह समीक्षा
का मानदणढ होने योग्य है ,--
पुराणुमित्येव न साधु सर्य न चापि काव्य नवमित्यवश्रम् |
समन््त परीक््यान्यतरद्भजन्ते मूट, परप्रत्ययनेय बुद्ठि। ॥
समीक्षक की किसी कृति की परख के लिए तव्स्थन होना
आवश्यक है क्याकि बह तट्स्थ हुए बिना सत्समाज्ञोचना का
पथ पकड़ नहीं सकता। श्राज्ञोचक का काम क्ता का वकील हीना
नहीं पाठक का सहायक होना है। वह जीवन तथा साहित्य दोना
हृष्टियों से उसे रचना के ओय तथा प्रय स्वरूप को समसाता है
एवं उसकी उद्देगगननक बातों को बाह्य कह कर उन्हें लंक्षित
कराता हे। तटरव। होने का श्रर्य कृति से दूर ही दूर रहना नहीं
है बरन काव्य गत वर्खित सारकृतिक तत्त्यों का निष्पक्ष दृष्टि से
सचयन करना है. जिससे विश्व ससकृति अधिक से अधिक
पूर्ण हो सफे। काव्यानुशीलन| के निरन्तर अभ्यास से जिनका
मन विस्वृत नहीं हुआ है, जिनम वर्णनीय विषय या वस्तु के
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भवनयोग्यता ते हृदयसवादभ।ज सहृदया | लोचतन ( अभिनवशुप्त )
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