जैन साहित्य संसोधक | Jain Sahity Sansodhak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
126
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand). कुंरपार सोणपाल प्रशस्ति
( लेखक--बनारसी दास जैन, एम० ए०, ओरियंटल कालेज, लाहोर, )
१. सन १९२० में एस० एस० जैन कानफ्रेन्स की तरफ से इन्दौर वासी सेठ केसरी
चन्द् भण्डारी ने मुझे लिखा कि उक्त कान्फ्ेन्स का जो प्राकृत कोश बन रहा है आप उसे देख-
कर उस के विषय में अपनी तथा अन्य प्राकृत विद्वानों की सम्मति लेकर लिखें। इस सम्बन्ध में
: मुझे उस सार कई नगरों में जाना पड़ा । जव मैं आगरे में था तो मेरा समागम पं० सुखछालूनी
से हुआ, उन्हों ने मुझे बतछाया कि यहां के मन्द्रि में एक नया शिक्ा लेख निकला है 1 निसको
अभी किस्ती ने नहीं देखा । मैं मुनि प्रतापविजयजी को साथ लेकर उसे देखने गया। परन्तु
उस समय छाप उतारने की सामग्री विद्यमान न थी इस लिये उस समय में वहां अधिक ठहरा भी
नहीं क्योंकि लेख को देखने के दो तीन घंटे पीछे मैं वहां से चल पड़ा था ।
२. फिर अग्रैठ सन १९१२१ में मैं पंजाब यूनिवर्सिटी के एम. ए. तथा बी. ए. छात्रों के
संसक्षत विद्यार्थियों को छेकर कलकत्ता, पटना, ठवनऊ आदि बड़े बड़े नगरों के अनायब घर
( ॥/४४०७४४॥४ ) देखने जा रहा था, तब आगरे में भी ठहरा और उपरोक्त शिलालेख की छाप
तय्यार की, परन्तु अब वहां न तो पं. सुखछारूमी थे नही मुनि प्रतापविनयनी थे। बाबू
दयाढूचन्दनी भी कारण वश बाहिर गए हुए थे। इन के अतिरिक्त और कोई श्रावक मुझ्न से
परिचित न थे इसलियि उस वक्त वह छाप मुन्न को न मिल सकी । अब कलकत्ता निवासी श्रीयुत
बाबू प्रणचन्द नाहर द्वारा मैं ने वह छाप प्राप्त की है और उसी के आधारपर पाठकों को इस
शिलालेख का परिचय दे रहा हूं। ;
३. यह लेख छाल पत्थर की शिल्ा पर ख़ुदा हुआ है जो ढग भग दो फुट हुूम्बी
और दो फुट चौड़ी है। लेख खोदने से पहिंले शिह्व के चारों और दो दो इंच का हाशिया
( 7०४/४7४० ) छोड कर रेखा डाल दी गई है। .रेखा के वाहिर ऊपर की तरफ “ पातसाहि श्री
जहांगीर ” उभरे हुए अक्षरों में ख़ुदा हुआहै | बाकी का सारा लेख गहिरे अक्षरों में ख़ुदा हुआ
है। रेखाओं के अन्दर छेख की ३३ पंक्तियां हैं मगर उन में छेख समाप्तन हो सका इस
लिये रेखाओं के बाहिर नीचे दो पंक्रैयां (नं ३४ और ३८ ) दाई ओर <क पंक्ति ( नं० ३९५ )
और वाई ओर दो पंक्तियां [ नं० ३६-३७ ] और खोदी गई हैं। शिल्ा के दाई ओर नीचे का
कुछ भाग टट गया है निस से लेख की पंक्ति २८-३४ और ३८ के अन्त के आठ नौ अक्षर
और पंक्ति ३५ के आदि के १४, १५ अक्षर टूट गए हैं। इस से कुँवरपाल सोनपार के उस
समय वर्तमान परिवार के प्रायः सब नाम नष्ट हो गए हैं । पंक्ति ३६-३७ के भी कुछ अक्षर
ढ्े नहीं गए । * 1 ८21 ७8छउऊउ ्॒ 42७ ९ घट ->>--++---+-+फ//--< ब्ड्य्डटः
1 मन्दिर की एक कोठडी में बहुत से पत्थर पडे थे। जब अग्रैठ मई सन् १९२०४ उत्तः पत्थरों! को
.निकालने छगे तो उन में से यह छेख भी निकला | अब यह शिल् लेख मन्दिर में हो#प्ि. हक
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