सुधर्मा | Sudharmaa
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
294
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ऊझापदासपणि श्री थे तो हम सब निश्चित थे।
विशेष “उनका सानिध्य, संरक्षण एवं
सूझबूझ श्रमण संघ के लिए कवच थी; पर
काल के आगे हम सब विवश हैं, पर
उपस्थित जो भी सर्वोच्च शास्ता है, उन्हें
तथा संघ के प्रत्येक सदस्यों को इस नाजुक
बेला में बहुत जागरूक रह कर विवेक
पूर्वक संघ हित में वह महत्त्वपूर्ण करके
संघ की अखण्डता
कायम रह सके। अन्त
में पूर्ण आस्था के साथ मैं आचार्य देव के
चरणों में अपने श्रद्धा सुमन समर्पित करता
हूँ ई
|
अद्भुत आकर्षक य्क्तित्व
आचार्य श्री आनन्द ऋषि जी म.
छ उपाध्याय श्री विशाल मुनि जी महाराज
आज सारा देश आचार्य देव के
देवलोकगमन से विह्लल बना हुआ है। बच्चे
से लेकर वृद्ध तक लाखों-लाखों दिलों में
यही चिन्ता परिव्याप्त है अब किनके
दर्शनों के लिए योजनायें बनाएंगे? अब
महाराष्ट्र की धरती की ओर कौन भागता
नजर आयेगा?
आचार्य-देव पूज्य श्री आनन्द. ऋषि
जी महाराज ने तेरह वर्ष की बुराइयों से
अछूती अवस्था में ही जैन मुनि के पावन
चारित्र को ग्रहण किया। बाल्यावस्था की
पवित्रता सारी जिन्दगी उनके जीवन में
सुवासित बनी रही। बाल ब्रह्मचारी साधना
से अपने को ही नहीं, करोड़ों-करोड़ों
आत्माओं के जीवन को पवित्र बनाने के
निमित्त बने रहे। उन्होंने ७९ वर्षों तक
संयम-जीवन की आराधना की। वर्षों तक
ऋषि-सम्प्रदाय के आचार्य, पांच सम््रदायों
के आचार्य, श्रमण-संघ के मन्त्री तथा
उपाध्याय आदि विशिष्ट पदों पर कार्यरत
रहे तथा (२७) वर्षों तक आचार्य-सम्राट्
के महान पद पर- विराजमान रहे। आचार्य
देव की आत्मसाधना उत्कृष्ट थी, वे तप-
जप स्वाध्याय ध्यान आदि सभी साधु-
साधना पद्धतियों में कुन्दन की तरह निर
चुके थे। उनकी रग-रग में साधना की
चमक परिव्याप्त हो चुकी थी। वे ऐसे
पवित्र साधना पुंज बन चुके थे कि उनका
मन, उनकी वाणी, उनका तन अक्षय
सिद्धियों का स्रोत बन चुका था।
आचार्य देव जीवन की प्रारम्भिक
अवस्था से लेकर अन्तिम अवस्था तक
लाखों-लाखों व्यक्तियों के आकर्षण केन्द्र
बने रहे। ऐसा किसी किसी युग-पुरुषः का
ही व्यक्तित्व होता है। जब श्रावक देवीचन्द
जी के इस सुपुत्र ने १३ वर्ष की नज़ी सी
स्मृति- सौरभ पुष्पाह् ९२/३५
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