नया मनुष्य | Naya Manushya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Naya Manushya by श्यामू संन्यासी - Shyamu Sainasi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्यामू संन्यासी - Shyamu Sainasi

Add Infomation AboutShyamu Sainasi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
नया मनुष्य २१ और उसझी दया याने वाणा कोई नहीं है ..वह मिसकने लगा झौर उसरी आँखों से झ्ाँसू बदन लगे। डाक्टर से निपटने के बाद सोचा कि लौदते समय, बाजार में * अपनी बात कहते कहते श्वादो क्षय भर के लिए चुप द्वो गया। उसने अपने कोद की जेब में हाथ डाल कर छोटा बड़ी लकढ़ियाँ निकाली घोर उसमें से एक एक को प्रसग झलग उठाते हुए भझपने लड़कों का नाम बोशने लगा [ इस बार वद्द बर्दगुनिया के नाम का उल्लेख करना भी नहीं भूना । फिर कराइत ओर झाहें भरत हुए काफी लम्बी चोढ़ी भुमिया बंध कर उसने बतलाया कि क्‍यों उसे मजबूर द्वोकर बकरी का बच्चा बेचने को निर्णय करना पढ़ा है। लाचार द्ोकर दी वह ऐसा कर रहा है। इसके पद झपने भ्रकाव्य त्ों से उसने मरियम को यह विश्वाम दिल्ला दिया हि जिस समय दूसरे लोग बाग काम के लिए आ दी रहे द्वोंग बह भपने सब्र काम निपटा कर शहर से लौद मायगा भोर (पामूदिक) खेत पर पहुँच जायगा । शहर है ही क्रितनी दूर, कुल बित्ता भर की तो दूरी हो है| और मर्यिम मे भी उसकी यात पर भरोस्ता कर लिया। जब उसने मरियम को योड़ा पिवत देखा तो सोचा कि क्‍यों न इस कमर में उससी पूरी स््रीकृति ही प्राप्त पर ली जाय) यद खयाल मन में झाते द्वी बह इम तरद उद्धक-कुद करन लगा मानो रिसी चीज़ को ढूँढ़ रहा हो । वद दोड़ कर बागड़ के पाप्त गया, दायों से हूँढु ढांढ़ कर एकऋ बढ़-सी शंकड़ी तोड़ी और पत्रक मेंप्ाते सरिमम के पास्त आ पहुँचा। फिर चेहरे पर याचना का भाव साकर और लकड़ी उसकी ओर बढ़ाते हुए बोला कऊ़रा मपनी सतसुनित्त को भा बुता लो ! दष्ठ बेचारी भी बन्‍चाप छो बच्ची है ? मुझे सपने मन की कर छेन दो | देखा, मुम्क दुण्ियारे का दिल न दुखामो । तुम्हं मेरे सिर बी सोगन्ध है। मेरी इतन सी बात मान लो | तुम मेरे लौणडों की समे मा से भो भधिक देख-भाल करती द्ो। उनसे नहताती घुतातो भौर उाझ्ो स्लाप सफाई करतो दो । भौर यह छब हें.




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now