दलित कान्ति दर्शन | Dalit Kaanti Darshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
92
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दलितों को दयनीय स्थिति पा
के स्त्री पुरुषों के समागम के परिणामस्वरूप वर्ण च्यवस्था विखण्डित होती चली
गई और जाति व्यवस्था का जन्म हो गया।
डा. अम्बेडकर ने भारतीय समाज व्यवस्था पर जाति व्यवस्था के दुष्प्रभावों
को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि--
जाति प्रथा ने प्रदूषण के दुरे विचारों को ग्रारम्म किया है जो भ्रव तक
हिन्दू समाज का प्लेग बना हुप्रा है । हिन्दू धर्म के भेद केवल सामाजिक ही नहीं
बरण घामिक प्रतिष्ठा का परिचायक भी है | जाति किसी हिन्दू के घामिक एवं
सामाजिक स्थिति की परियायक है। कोई इस कारण हिन्दू नहीं है क्योंकि बह
भारतवासी या किसी जाति विशेष या राष्ट्रीयदा से सम्बद्ध है। वरव् इसलिए
हिल्दू है क्योंकि वह ब्राह्मणवाद के थेरे में हे। कोई भी जन्म से ही क्षत्रिय,
वैश्य या शूद्र है । ऐसा कहा जाता है कि इन तीन ब्णों का कोई भी गव्यक्ति द्राह्मण
को स्थिति पाने मे प्रक्षम है।”
डा. प्रम्बेडकर ने बाह्णों के दर्शंश को “दमन को तकनीक” कहा है।
उन्होंने इसका कारण ब्राह्मणवाद के छः प्रमुख सिद्धान्तों को माना हैं ।
(।) विभिर्त वर्गों के बीच ्रमिक भसमानता ।
(2) थूद्रों एड श्रद्भूतों को पूछे निरस्त्रीकरण 1
() शूद्वीं एवं भ्रदूतों का शिक्षा पर पूर्ण प्रतिवन्ध |
(4) शक्ति एवम् श्राधिकार के स्थानों से शूद्रों एवं अरछूतों का पूर्ण बद्धिष्कार ॥
($) थद्ठों एवं परदूतों द्वारा उम्पत्ति भर्जन पर पूर्ण नियेध ।
(6) भ्ौरतों का पूर्ण म्रधीनीकरणस एवं दमन |
पे इस प्रकार असमानता द्राह्मणों का अधिझंठ प्रिद्धा्त ही। गया श्रौड विगत
वर्गों का दमन उनका कर्तव्य समझा गया । छुप्ता-टूत बेदल सामाजिक, धामिक
पद्धति ही नहीं थो वरन् अ्र्थिक पद्धति थो जो गुलामी से भी खराब थी |
ं 1931 को जनशणना में पांच ऐसी अर्मकरश निर्षोप्यकाश्ी का झसतेल है जो
भअछूतों को भ्पने मूलभूत प्रधिकारों से भी बंचियद करती थी # मिल ध्रक्व रे थी--
(1) झाजेजनिक संस्थापोों या सुखसुविधात्रों ढी संस्थाप्रों दैते विच्वालय, इसों
या स्नान करने के स्थान पर प्रतिबन्ध ।
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