हिन्दी गद्य वाटिका | Hindi Gadya Vatika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
265
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विन्दी-गद्य न्वाटिया
भगत चद्दा करे हैं, जेसी पटल फरें 711 फिर पाया। ने पुछा--
मनसखो, तेर चाचा-चाचा किरि गायण माता को +जात देने
शाप हैं| उसने कही, “तुझ उपर नहीं! हुये मेरे भाईवे
माता निऋजा आर सार दूर में की तिझ रपने को जगद्द न
रही और उप जाते की आर जाती सही, उस समय मरी
चाएदी न 1 एशहँड तक मएतार ले [अरदासख वरण कहा था कि
माता रानो, अपन गुक्काम पर दया कर ] जय यद्द पाँच बरस
का होगा, में तरी जएत दूँगी, श्र तेर॑ माण पर एज यछडा
छाडईूँगी, आर भगत को ज्ञाइा पद्दनाऊँगी। सा अब मरा माहन
भाई प् बरख का हृ| गया है | हर्साहिए दस ज्ञात देते स्ाप ६1
ये बाते इन लड॒फिया म॑ हो दी स्व! थीं कि इतन भे सश्वे
खब सीतका के मन्व्स द पास आरा पहुँच । मनसुखी पायती
से जुदा होकर अपनो चची के साथ हो की और शपन भाई
मोहन का गोद से जलकर मन्दिर वे भीतर गई । फया देखती दे
कि वद्दों एक पीतल की मूर्ति फूल आर हारास लदी हुई
सकी दे। मनसुखी पे चचा ने अपनी माया से कद्दा--ले मोहन
का मा, पुआपा निकाल ओर छारे के द्वाथ से छुआ के
भद्दारानी पर चदा द् और भगत जी को जोडा पहना दे, झौर
चछढ़े को छोड दे ।
# झेट। * टक्षियों को घदंनी 1६ दिनय 1
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