हिन्दी गद्य वाटिका | Hindi Gadya Vatika

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Hindi Gadya Vatika by सन्तराम - Santram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विन्दी-गद्य न्वाटिया भगत चद्दा करे हैं, जेसी पटल फरें 711 फिर पाया। ने पुछा-- मनसखो, तेर चाचा-चाचा किरि गायण माता को +जात देने शाप हैं| उसने कही, “तुझ उपर नहीं! हुये मेरे भाईवे माता निऋजा आर सार दूर में की तिझ रपने को जगद्द न रही और उप जाते की आर जाती सही, उस समय मरी चाएदी न 1 एशहँड तक मएतार ले [अरदासख वरण कहा था कि माता रानो, अपन गुक्काम पर दया कर ] जय यद्द पाँच बरस का होगा, में तरी जएत दूँगी, श्र तेर॑ माण पर एज यछडा छाडईूँगी, आर भगत को ज्ञाइा पद्दनाऊँगी। सा अब मरा माहन भाई प् बरख का हृ| गया है | हर्साहिए दस ज्ञात देते स्ाप ६1 ये बाते इन लड॒फिया म॑ हो दी स्व! थीं कि इतन भे सश्वे खब सीतका के मन्व्स द पास आरा पहुँच । मनसुखी पायती से जुदा होकर अपनो चची के साथ हो की और शपन भाई मोहन का गोद से जलकर मन्दिर वे भीतर गई । फया देखती दे कि वद्दों एक पीतल की मूर्ति फूल आर हारास लदी हुई सकी दे। मनसुखी पे चचा ने अपनी माया से कद्दा--ले मोहन का मा, पुआपा निकाल ओर छारे के द्वाथ से छुआ के भद्दारानी पर चदा द्‌ और भगत जी को जोडा पहना दे, झौर चछढ़े को छोड दे । # झेट। * टक्षियों को घदंनी 1६ दिनय 1 श््े




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