आधुनिक संस्कृत - नाटक भाग - 2 | Aadhunik Sanskrit Natak Bhag - 2

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Book Image : आधुनिक संस्कृत - नाटक भाग - 2  - Aadhunik Sanskrit Natak Bhag - 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुन्दरवीर-रघूदह का नाट्यसाहित्य श्छृ्‌ कुशल हैं और होगा ! आप निश्चिन्त हों! मेंने सवक्ो बंचा लिया है। जयपाल ने जात लिया कि मेरा अमीप्ट पूरा हुआ कि भोज का लीछावती से गरान्प्वें विवाह हो चुका | उसने कहा कि घारा मे जाकर मुज को जीत कर भोज का अमिपेक कराता हूँ । लीकावती मी साथ गई । उसने पुरुष-चेप घारण कर लिया था । घारा मे जपपारछ ने देखा कि युद्ध की सज्जा हो रही है। मोजपक्षीय राजाओं मे घारा को घेर रखा था। ग्रोपव-विद्या से छीछावती और जयप्राल नगर के मीतर पहुंचे । वहाँ विलासवती चिता में जलने जा रही थी। वह भोज के लिए विलाप करती हुई कहती थी-- हा घारानगररत्नप्रदीप, कथं ते पादकमलमनालोक्य जी वितुमुत्सहे । शशिप्रमा ( सास ) कहती थी क्ि तेरा ही मुख देखकर जीवित थी। अब मैं भी अग्टिसात्‌ हो जाऊँगी ! न जयपाल और लीलावती प्रकट हुई | विलासवती को संरम्म से रोका । झशिप्रमा कहा-- राजा गतः पितृवनं ततथो5पि बालः प्राप्तो वन श्रुतिधदाविपयः कठो रू । वत्सा स्नुपा मम्र चितामधि रोदुकामा हास्ये तवो5हमपि जीवितमेतयेव !।८५ तब जयपाल ने उन्हें बताया-- कुजली भोजकुमा रः इस बीच आदित्यवर्मा का घारा पर आक्रमण हो गया | उस पर मुज के संनिक प्रहार करने लगे, पर शीघ्र ही मुज परास्त हुआ 1 घारा जिताद्य यूधि मालवराजघानी मुजो गतो हिमगिरिंतपसे निराश: । श्रानितुमत्र विपिनात्‌ स्वयमेव भोज सेनापति_/ततरो नगरात्‌ प्रयाति ॥ जयपाल ने आदित्यवर्मा और पतञ्मावती का परिचय छीलावती से कराया कि यह आपकी कन्या है 1 फिर मोज का अभिषेक हुआ । नाट्यशिल्प अद्भू के आरम्म के पूर्व विपष्कम्मक है । नाट्यबशास्त्रीयः नियमानुसार विष्कम्मक इस कोटि के रूप में नहीं होता चाहिए था। परवर्ती युग में इस नियम की व्यरथंता जानकर इसे प्रायशः छोड़ दिया गया | सुदूरस्थित अनेक स्थलों की घटनायें विना दृश्य परिवर्तन के ही अद्थू में दिखाई गई हैं। केवल इतना ही कहा जाता है-- ( इति सत्वरं परिक्रम्य ) श्रहो आगतावेव समीहित स्थलमस्‌ । इतने मात्र से अरष्यमूमि से घारा को घटना-स्थली मे पाव आ जाता है। इस प्रकार एक अंक में अनेक दृश्यस्थली सम्भव हैं। भोज-राजादु: में छायानाट्य-त्तत्त' महत्त्वपूर्ण है! इसमें रपक के आरभ्म में ही भोज भिन्ु का वे घारण करके उपस्थित होता है। बच्धू के मध्य में लीलावती को श्रतिविम्ब में देखना भी छायातत्त्वानुसारी है। यथा,




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