आधुनिक संस्कृत - नाटक भाग - 2 | Aadhunik Sanskrit Natak Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
723
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सुन्दरवीर-रघूदह का नाट्यसाहित्य श्छृ्
कुशल हैं और होगा ! आप निश्चिन्त हों! मेंने सवक्ो बंचा लिया है। जयपाल
ने जात लिया कि मेरा अमीप्ट पूरा हुआ कि भोज का लीछावती से गरान्प्वें विवाह
हो चुका | उसने कहा कि घारा मे जाकर मुज को जीत कर भोज का अमिपेक
कराता हूँ । लीकावती मी साथ गई । उसने पुरुष-चेप घारण कर लिया था ।
घारा मे जपपारछ ने देखा कि युद्ध की सज्जा हो रही है। मोजपक्षीय राजाओं मे
घारा को घेर रखा था। ग्रोपव-विद्या से छीछावती और जयप्राल नगर के मीतर
पहुंचे । वहाँ विलासवती चिता में जलने जा रही थी। वह भोज के लिए विलाप
करती हुई कहती थी--
हा घारानगररत्नप्रदीप, कथं ते पादकमलमनालोक्य जी वितुमुत्सहे ।
शशिप्रमा ( सास ) कहती थी क्ि तेरा ही मुख देखकर जीवित थी। अब मैं भी
अग्टिसात् हो जाऊँगी !
न जयपाल और लीलावती प्रकट हुई | विलासवती को संरम्म से रोका । झशिप्रमा
कहा--
राजा गतः पितृवनं ततथो5पि बालः प्राप्तो वन श्रुतिधदाविपयः कठो रू ।
वत्सा स्नुपा मम्र चितामधि रोदुकामा हास्ये तवो5हमपि जीवितमेतयेव !।८५
तब जयपाल ने उन्हें बताया--
कुजली भोजकुमा रः
इस बीच आदित्यवर्मा का घारा पर आक्रमण हो गया | उस पर मुज के संनिक
प्रहार करने लगे, पर शीघ्र ही मुज परास्त हुआ 1
घारा जिताद्य यूधि मालवराजघानी मुजो गतो हिमगिरिंतपसे निराश: ।
श्रानितुमत्र विपिनात् स्वयमेव भोज सेनापति_/ततरो नगरात् प्रयाति ॥
जयपाल ने आदित्यवर्मा और पतञ्मावती का परिचय छीलावती से कराया कि यह
आपकी कन्या है 1 फिर मोज का अभिषेक हुआ ।
नाट्यशिल्प
अद्भू के आरम्म के पूर्व विपष्कम्मक है । नाट्यबशास्त्रीयः नियमानुसार
विष्कम्मक इस कोटि के रूप में नहीं होता चाहिए था। परवर्ती युग में इस नियम
की व्यरथंता जानकर इसे प्रायशः छोड़ दिया गया | सुदूरस्थित अनेक स्थलों की
घटनायें विना दृश्य परिवर्तन के ही अद्थू में दिखाई गई हैं। केवल इतना ही कहा
जाता है--
( इति सत्वरं परिक्रम्य ) श्रहो आगतावेव समीहित स्थलमस् ।
इतने मात्र से अरष्यमूमि से घारा को घटना-स्थली मे पाव आ जाता है। इस
प्रकार एक अंक में अनेक दृश्यस्थली सम्भव हैं। भोज-राजादु: में छायानाट्य-त्तत्त'
महत्त्वपूर्ण है! इसमें रपक के आरभ्म में ही भोज भिन्ु का वे घारण करके
उपस्थित होता है। बच्धू के मध्य में लीलावती को श्रतिविम्ब में देखना भी
छायातत्त्वानुसारी है। यथा,
User Reviews
No Reviews | Add Yours...