बृहद्यवनजातकम् | Brihadhyavanjaatakam

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Brihadhyavanjaatakam by गंगाविष्णु श्रीकृष्णदास - Gangavishnu Shreekrishndas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अस्तावना । ७०-०-क्बफईहिद3-+न»क सब संसारमें ज्योतिष शाखका चमत्कार प्रसिद्ध है, बड़े २ महा. विद्वान महर्षियोंने इस शाखके अनेक ग्रंथ निमोण किये हैं.। यह एक ऐसा शाख दे कि, जिक्षके द्वारा यूत, भविष्य, वर्तमान तीनों फाकोके वृत्तान्त जानेजाते हैं, यदि पूर्ण ज्योतिषी हो; तो केपा भी कुंतकी इ। उत्का अपनी विद्याते विश्वास करा, सकता हे । जद॒तक इस देशमें ज्योतिषके तिद्वान्तग्रन्य ऊब्ब होते थे और पू्णे पणिइत इस वियाके पायेजाते थे तच्बतक जो कुछ वे गणित द्वारा फठ कैन करते थे उसमे किसी प्रकारका फेरफार नदी दोता था, कालक्रमसे सिद्धान्त अन्थोंक कोप दोने रूगा शुरुसुखसे विद्या उपाजेत करने आलस्य आया सिद्धान्त ग्रन्योंको छिपानेकी परिपाटठी चढो, शिष्पोने नम्नता त्यागी और दी काक परिश्रम न करके कायेवरादीमात्रते बह अपनेको कृतकृत्य मानने छगे तबसे ज्योतिष शात्लमें कुछ न्‍्यून- दासी आगई ओर भनुष्योंको भी कुछकुछ पिराग इनेछगा तथा कोई २ आक्षेप भी करने छगे, परन्तु “ सबे दिन नाई बरोबर जात” इस वाक्यक अनुसार अंग्रेजी सरकारके राज्यमें कुछ २ फिर वियाकी बूद्धेके यल किये जाने गे और यंत्राठयोंस अनेक :ग्रन्थ प्रकाशित होने लगे तबते प्राचीन अन्थोंकी खोज होने छगी और उनका प्रकाञ्न होने छगा जितने ग्रन्थ चाहिये उतने प्रकाशित नहीं इुए हैं तथापि उपयोगी अन्थ प्रायः छप चुके हैं में आज जिस अन्थके विषयर्मे लिखे रहा है वह यबनजालक का छोदासा ग्रन्य छप चुका है परन्तु यह उससे बहुत बडा है ओर इसके फल बहुत चमत्कारके हैं इसके अनु सार जन्मपत्रका फक कहनेसे सुननेवाला मोद्दित होजाता है एक एक- भावमें सात सात विचारोंका फथन किया है जो प्राति इमको ५० बर्षकी




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