दम्भ पंद | Damb Pand

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Damb Pand  by भिक्षु आनन्द कौसल्यायन - Bhadant Anand Kausalyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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. शाप ] अप्पमादवर्गो [६ सबथ्मतस्स च पम्मजीविनो अप्पमत्तस्स यसोभिवडढति ॥७॥ उद्योगी, जागरूक, पवित्र-कर्म करने वाले, सोच समझ कर कास करनेवाले, संयरमी, धर्मानुतार जीविका चलानेवाले, अ्रप्रमादी मनुष्य : के यश की वृद्धि होती है । द ( ५, ) उद्ठानेन'पपरसादेन सब्ममेन देन च। दीप॑ कयिराथ मेधावी यं॑ ओघो नाभिकीरति | ५ ॥ बुद्धिमान मनुष्य उधोग, अ्रप्रमांद, संयम ओर दम द्वारा ऐसा दीप बनावे, जिसे बाढ़ डुबा न सके । ि ( २६ ) पसादमनुयुव्जन्ति बाला दुम्मेघधिनो जना। अप्पमादुच मेधावी धर सेट्र शव रक्‍खति ॥ ६॥ मूर्ख, दुबृद्धि प्रमाद करते हैं। बुद्धिमान्‌ पुरुष श्रेष्ठथघन की तरह अप्रमाद की रक्षा करते ईं | (२७ ) . मा पमादमलुयुब्जेथ मा कामरतिसन्थवं। अप्पमत्तोी हि कायततो पप्पोति बविपुल॑ सुखं ॥७॥ प्रमाद मत करो | कास-सोगों में मत्त फैंसो प्रमाद-रहित हो ध्यान करने से विपुल छुख की प्राप्ति होती है । ( २८ ) पसाद॑ अप्पसादेन यदा चुदति पण्डितों। पव्मापासादमारुय्ठह असोकों स्रोकिनिं पजं। . पब्ब॑तट्टों व भुम्मट्ट धीरों . बाले. . श्रवेक्वति || ८॥




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