कीतलसर का कलहंस महाकाव्य | Keetalasar Ka Kalahans Mahakavya

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Keetalasar Ka Kalahans Mahakavya  by शशिकर -Shashikar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मंगल-प्रवेश / ५ वाल्मीकि और कालीदास के अन्तर में आप समाई थी । कलम व्यास ने सर्वप्रथम जग में माँ तुमको यहाँ झुकाई थी ॥ जय शंकर प्रसाद, निराला निशदिन महादेवी. संग पंत ने । माँ तेरा गौरव गान सुनाया सदा सरस काव्य के ग्रन्थ ने ॥ हे वीणा पाणि ।! प्रगतिवाद भी भूल नहीं तुमको पाया था । प्रयोग हुए कविता में लेकिन सिर सबने तुम्हें झुकाया था ॥ रस बदला नित्य भाषा बदली- छन्दों' ने नव रूप संयोया । लिया कवियों ने नाम तेरा,ही फिर स्याही में कलम डुबोया ॥ आंगन यही हिमालय का. है, बहे गंग कौ धारा ।.. नित खेत सदा सोना उगले, ग्राम - नगर है प्याया ॥. , गंगा, . यमुना,. राबी झेलम, कृष्णा अरु. कावेरी । प्यास बुझती इस धरती की, ह पे बन. सरिताएँ चेरी ॥ ब्रह्मपुत्र -_ के संग नर्मदा, कल कल कल कल बहती. |. जो इतिहास रचा कूलों पर, - उनको हर पल कहती ॥ संतपुड़ा, विन्ध्याचल - हरपल, गगन चूमते रहते. 1 व्यथा कथा मरुधर कौ जग को, ु . आडावल. है कहते । चरण पखारे जिसके सागर, नीरद'. आंचल.: -धोये 1. उजड़ न जाये जंगल जिससे, - पबनन बीज को बोये ॥.




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