कीतलसर का कलहंस महाकाव्य | Keetalasar Ka Kalahans Mahakavya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
210
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मंगल-प्रवेश / ५
वाल्मीकि और कालीदास के अन्तर में आप समाई थी ।
कलम व्यास ने सर्वप्रथम जग में माँ तुमको यहाँ झुकाई थी ॥
जय शंकर प्रसाद, निराला निशदिन महादेवी. संग पंत ने ।
माँ तेरा गौरव गान सुनाया सदा सरस काव्य के ग्रन्थ ने ॥
हे वीणा पाणि ।! प्रगतिवाद भी भूल नहीं तुमको पाया था ।
प्रयोग हुए कविता में लेकिन सिर सबने तुम्हें झुकाया था ॥
रस बदला नित्य भाषा बदली- छन्दों' ने नव रूप संयोया ।
लिया कवियों ने नाम तेरा,ही फिर स्याही में कलम डुबोया ॥
आंगन यही हिमालय का. है,
बहे गंग कौ धारा ।..
नित खेत सदा सोना उगले,
ग्राम - नगर है प्याया ॥. ,
गंगा, . यमुना,. राबी झेलम,
कृष्णा अरु. कावेरी ।
प्यास बुझती इस धरती की,
ह पे बन. सरिताएँ चेरी ॥
ब्रह्मपुत्र -_ के संग नर्मदा,
कल कल कल कल बहती. |.
जो इतिहास रचा कूलों पर, -
उनको हर पल कहती ॥
संतपुड़ा, विन्ध्याचल - हरपल,
गगन चूमते रहते. 1
व्यथा कथा मरुधर कौ जग को,
ु . आडावल. है कहते ।
चरण पखारे जिसके सागर,
नीरद'. आंचल.: -धोये 1.
उजड़ न जाये जंगल जिससे, -
पबनन बीज को बोये ॥.
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