नटी | Nati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्री ७ २४५ पानी भरकर लौटती ओरतें तिरछी निगाहों से मेमों को देखती हैं ओर लाज से दोहरी हो जाती हैं । सब कुछ ठीक था, संगर अब दिन-दिन चुपके से बदलाव आता जा रहा है । समय की गतिविधि उनको समझ में नही था रही है। पहले इस तरह की बात न थी ॥ पिछले सात सालों मे चार बार फसलें मारी गयों--चेतों के सुनहले गेहूँ के पोधे जल के अभाव में जल गये । सूखे के बाद बाढ़ आयी । लगातार तीन सालों तक बाढ़ । यमुता लघालद भर गयी । चर-द्वार-फसल सब बाढ़ में वह गये । अतवर को अपने मित्र नन्दल्ाल की याद शायी। जव-जव मुसीबत की वात उठती है, नन्‍्दलाल कार्य-कारण बताते हुए कहता है, “जानते हो, दुनिया से धरम-करम उठता जा रहा है। इसीलिए मुसीवत का यह दोर चल रहा है।” ऐसा ही होगा, नही तो ऐसी-ऐसी भजीव धटनाएँ क्यों घट रही हैं जितका कोई मोर-छोर नही 1 नन्‍्दलाल का बढ़ा भाई छगतत्ताल लगातार दो वर्षों तक मनौती मान मर्मदा के जत्त में स्‍्नान-दान करने गया था। दो महीने पहले धर वापस आया है। गहता है, “चाहे हिन्दुओं के शास्त्र की दात्त कहो, चाहे कुरान-शरीफ की, नर्मदा-गंगरा की जलघारा की घात कहो या हेरा पहाड़ की पुण्यधांरा की--नगी भंग्रेज सरकार ने सबका महत्त्व घटा दिया है। आजकल चाहे गवाही देने जाओ, या साहबों से बात करने जाओ, साहब लोग हर बात पर कसम खिलाते हैं । छोटी-छोटी बांत के लिए, पाष-पुण्य और स्वार्थ के लिए विधर्भी ग्ोरों के हुबम पर हम सौगन्ध खाते है, इसीलिए दोनो धर्मों का सिर शुक गया है भौर दीन दुनिया के मालिक रुष्ट हो गये हैं ।/” अधर्म की सबसे बड़ी वाद कहकर मन्दलाल खुद भी हतप्रभ हो जाता है । उसके कान के पास मुँह ले जाकर कहता है, “तुम्हारे मजहब में कोई मनाही नही है मगर वह मांस कभी ठुमने खाया है ?/ “हौदा ! तोबा ! !” कहकर अनवर नाक-कान मलता है | वह मांस” का शर्द है निषिद्ध गौसमास | इस शब्द को भल्दलात मुँह से उच्चारण भी नहीं कर सकता । /'मजहब में मनाही नहीं है तो कया हुआ ?” “मजहवब कोई एक तो महीं, हजारों हैं। व्यावहारिक जीवन का भीतो धर्माचरण हैं। जिस पड़ोसी के साथ वचपत से लेकर अब तक खेलकर बड़े हुए हो, उसमें भी तो मन नामक चीज है, उसका भो तो कोई विश्वास है। उसे नदी--२




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