भावकुतुहलम | Bhavakutuhalam

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Bhavakutuhalam by पण्डित महीधर - Pandit Mahidhar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पस्तावना । ९.3+०->बईनफ्फेझ-२*+ जब कि, यवन बादशाहोंके. महान्‌ अत्याचारसे बढात्काररूपी घोर राहु अपने तीत्र तिमिरसे भारतभण्डारके विमल सर्यरूपी सुग्रन्थ ज्योतिष- विद्याकों चारों ओरसे आच्छादित कर रहा था, बढ़े बड़े त्रिकाठज्ञ ऋषि मुरनीश्वरोंके प्रणीत ग्रंथ बलवान मुसठमान आगमिेकुंडर्म हवन कररहे थे, जिन ग्न्थोंके अवलंबसे ज्योतिषी त्िकालज्ञ कहछाते थे, ऐसी अपूब घटनाकों अवलोकन कर उससे पार पानेके हेतु “ जीवनाथनामा ज्योति- विंदू ” जो उस कालमे परमसिद्ध पुरुष कहलाते थे, ज्योतिषवियाम आदे- तीय ज्ञान होनेसे छोग उनकी जिह्मांम सरस्वतीका वास बतलाते थ॑, उन्होंने यह निर्मल शब्दरूपी अम्तपुजंस “ भावकुतूहठ ” ज्योतिष फलादेशरूपी धारा निकाली है, इसमें निमम्न होंने ( पढने ) से मनुष्य सर्वज्ञाता हो सकता है, तीनों काठकी बातफों जान सकता है, उत्तम रीतिसे कुण्डडीका फठाफठ कह सकता है. यह अन्थ संस्कृतमें होनेसे सबके समझमें नहीं आता था इसलिये अनमभिज्ञ- बाढकोके प्रसन्नार्थ टीहरी ( गढवाल ) निवासी “ महीधर ? नामा ज्योतिपी निर्मित अत्युत्तम भापादीकासहित इसे अपने “श्रीवेडटेश्वर' स्टीमू-पेसमें मुद्रित कर भसिद्ध किया । अबकी बार चतुथवित्तिम फिर भी बृहज्ञातकादि ग्रन्थाके आभयसे शाक्रियोंसे भी मांति संशोधन कराय मुद्रित कर प्रकाशित किया है आशा है कि अनुग्राहक ग्राहक इसे ग्रहण कर रव॒र्य छाम उठावेंगे और मेरे प्रिभमकों सफल करेंगे। आपका छपाकांक्षी- खेमराज श्रीकृष्णदास, ८ आवेइटेखर ” स्टीम-यन्त्रा्याध्यक्ष-सुंबई.




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