ताजिकनीलकंठी | Tajikneelkanthi

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Tajikneelkanthi  by पण्डित महीधर - Pandit Mahidhar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाषायीकासमेता । (१७) ' सूर्य तात्कालिक स्पष्ट सायन स्वोदयगुणित भुक्त भोग्यांर कणसंज्ञकलमम कमसे -करके मोग्य भुक्तका पछात्मक सूर्य्य स्पष्ट करके. लभ्नस्पष्टमें इटकालकी -पलाबोंमें घटाया, यहाँ नव वा उन्नतकों इृष्ट मानकर उसकी बटिकाकी पछाओं में घटवा और विधि सभी लग्न स्पष्टोक्तवत्‌ करनेंसे दशम लग्न स्पष्ट होताहै जेसे-पूर्व लम्म स्पष्ट करनेमें तात्कालिक सूम्य स्पष्ट लियागया, वही यहांभी लिया जाताहै. उनका भुक्तांशादिकोंसे उस्तीके राशिसंख्यक लग्नसंड गुनके तीससे भाग लेनेसे छाम पलादि सूर्य्यकी होंगी, पश्चात्‌ उन्नत पछाओंकों इ्ट- काल मानकर इनमें सूम्येके पछादि बटाय देंना; उपरांत सूर्यराशि लग्म- खंड बटाना, यदि न घंटे तो शेष पछादिकोंकों वीससे गुनकर पूर्व अशुद्ध लग खंडसे भाग देना, रड्बि अंशादि हुये.अशुद्ध लग्न राशिंमें घगयके अय- नांश घटाय देना वह लम्नस्पष्ट राश्यादि होजायगा, इस प्रकार देशम होता है यह ऋणसंज्ञक विविहे यहां वही तत्काल सूर्म्य स्पषके अंशादि ३० में घटायके स्वोदय में गुतना ३० से भाग लेकर लब्धि पछादि सूथ्यका भोग्य हुवा इसे पश्चिम नत जो इश्ट बानाहे उसके पढावों में घटाय देनां. जो ने घंटे तो-शेष ३० से गुनाकर अशुद्ध छ््नखंढ्से भाग लेना छाम अंशादि राश्यादि यथाक्रमसे योजित करके अयनांश घटाय देना, राश्यादि दशम लग्न स्पष्ट हो जाताहै यह धनसंज्ञक विधिंहे इस प्रकार रमन दशम स्पष्ट करके रम्म रपंहेमे छः राशि जोडके सप्तम भाव रपष्ट होताहै. ये ४ भावेकि स्पष्ट होगये. ओर भावसंधियोंकी रीति इस प्रकार है कि चतुर्थमावस्पष्ठमें लप्नस्प्ट धटाय देना. शेषमें छः से भाग ढेनेंसे छाम पष्ठांश हुवा. यह लग्ममें जोडनेसे तनुधनकी सौदि होतीहे इस संपिमें जोडनेसे द्वितीय भाव होताहै. ऐसेही द्ितीयभावमें जोडनेंसे २। ३ की संधि, इसमें जोडनेसे तृतीय भाव और इसमें भी जोडनेंसे ३1४ की संधि होगी इस संधिमें जोडनेसे सुखमभाव जो दशममें६राशि जो ढके बनाहे वही मिल जायगा. उपरांत पुवोनीत पष्ठांशकी एक राशिमें घय- यके जो शषेपकहो वह चतुर्थभावर्म जोडनेसे ४। ७ की संधि होगी. संभिमे . जे




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