एक छत के अजनबी | Ek Chat Ke Ajnabi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एक छत के अजनबी / १७ सीड़ बंढ़ती चली जा रही है। पता नहीं यह सिलसिला कहाँ जाकर दम लेगा । यह दिनोंदिन बेपनाह जनसंख्या का अभिशाप है। सरकार भी इस दिशा में पूर्ण निष्क्रिय साबित हो रही है। यह काम जोर-जबरदस्ती से तो किया नहीं जा सकता । जब तक इसके पीछे कोई साफ दृष्टि और समझ न हो लोग जनसंख्या पर नियंत्रण करने का रास्ता अपना ही नहीं सकते । मेरी यह बात सुनकर वर्मा जी मुस्कराए और बोले जहाँ तक हमारा सवाल है हमने तो इस तरफ सरकार को पूरा सहयोग दिया है। राष्ट्रीय महत्व के प्रश्न को हमने पूरी निष्ठा से हल करने की कोशिश की है । मैंने उनकी बात पर सिर हिलाकर हामी भरी मगर तभी मेरी दृष्टि मल्लिका के चेहरे पर चली गई । उसका मुँह तमतमाया हुआ था और वह कुछ कहने को आकुल नज़र भा रही थी मगर न जाने किस संकोच के कारण कुछ भी कह नहीं पा रही थी । हो सकता है वह वर्मा जी के इस दृष्टिकोण से सहमत नहीं थी कि घर में एक भी सस्तान न हो या हो सकता है इसका कोई और ही कारण रहा हो। मैंने बात बदलते हुए कहा हम तो अभी इस घर-गृहस्थी के झंझट से बरी हैं--जब कभी ईश्वर ने हमारी सुधि ली तो कुछ सोचेंगे । मल्लिका का चेहरा मेरी बात से वदल गया और वह बोलीं आप ऊपर ही ऊपर से यह वात कह रहे हैं। अगर आप गम्भी रता से घर बसाने की सोचते हो तो मैं एक लड़की आपको सजेस्ट कर सकती हूँ । ठीक है बात पक्की रही । आप हमारे लिए कोशिश कीजिए । शायद कहीं लिफ्ट मिल जाए । इसमें कया मुश्किल है कहकर मल्लिका ने अपना पर्स खोलकर भीतर की एक तह से पासपोर्ट साइज का फोटो निकालकर मेरे हाथ में थमाते हुए कहा यह मेरी सहेली वरुणा कश्यप है । मेरे ही कालिज में इंगलिश की लेक्चरर है । इससे सुन्दर कमाऊ भर सुशील लड़की आपको चूँढे नद्दीं मिलेगी कहीं । मैंने उत्साह प्रदर्शित किया बस तो मार लिया मैदान । मेरा सौभाग्य तो घर बैठे यहीं आ पहुँचा । मैंने मल्लिका का दिया हुआ फोटो देखा । लड़की वास्तव में सुन्दर




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