रासो साहित्य और पृथ्वीराज रासो | Raso Sahity aur Prithviraj Raso

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Raso Sahity aur Prithviraj Raso by नरोत्तमदास - Narottam Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है वह साहित्यिक ही है एविहासित्र तनिक भी नेहा । हा, पृथ्वायज शसा मस परिवधनशीत मद्गावा य (ल्कू2 त॑ ह्ु०फ४1) वा जपना सास्दृतिव मूल्य भी है। इतिहासतत्त् प्रधाव रासा वा बहुत बडा ऐतिहासिक सूत्य है । मयकालीन जारताय इतिहास के अन्त अधराराच्उन स्थतों पर उससे अच्छा प्रवाश पड़ता है । मुसतमानी आधारा पर लिसित एक्प्लाय इतिहास वे साधन और पति मे उततस अच्छी सहायता मिल सकता है। निस्सदह उतक उपयोग में सावधानी वी आवश्यकता है । इतिहास का जा आग कवि का समकालीन अथवा निकट भूतनादीन नहीं उसका प्रामाणिक्ता जसनिग्य सहा क्‍्याबि बह क्सी-ने किया थय में जनश्वतियां से जे मिजित नहीं । निकट भूव-जालीन और समवालान *तिहास की प्रामाणिकता तो सहिस्पि नहीं पर चह अतिशयोक्ति और एक्पशीयता के दोपा से सत्था सुक्त है एसा नहीं कहा जा सकता ।




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