मार्कण्डेय - पुराण भाग - 1 | Markandey - Puran Bhag - 1

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Book Image : मार्कण्डेय - पुराण भाग - 1  - Markandey - Puran Bhag - 1

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जन्म:-

20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)

मृत्यु :-

2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत

अन्य नाम :-

श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी

आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |

गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत

पत्नी :- भगवती देवी शर्मा

श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका भारतवर्ष के धामिक साहित्य मे पुराणों का एक विशिष्ट स्थान है | यो तो हिन्दू धर्म मे वेदो की प्रतिष्ठा सर्वोपरि है और श्रध्यात्म की दृष्टि से उपनिषदों को समस्त ससार मे अद्वितीय माता गया है, पर लोक-प्रियता की हृष्टि से पुराणो का दर्जा बढा-चढा है। जिस प्रकार ऊचे दर्ज का साहित्य थोड़े विद्वानों द्वारा समाहत होता है, पर सामान्य कोटि वी मनोरजक, तथा रुचिकर पुस्तकों का प्रचार अगरित जनता में होता है, उसी प्रकार वेद और उपनिपदो के गृह तत्वो का विवेचन जहाँ गिने चुने विद्वानों तथा अध्ययनशील व्यक्तियों के काम की चीज होती है, वहाँ पुराणों की कथाओ को गाँवों के अपढ लोग भी सुनते ओर समभते रहते है। यद्यपि कुछ कारणो से पठित समुदाय में इनके सम्बन्ध में कई प्रकार की अ्रातियाँ फली हुई है और अनेक आधुनिकता का दावा करने वाले सज्जन इनको सर्वंथा कल्पित भी कह देते हे, पर इसका कारण ग्ही है कि उन्होने कभी पुराणों के अध्ययन का प्रयत्त नही किया । पुराणों का उद्देश्य ' चीन युगी क्री घटताओ और परम्परागत ऐतिहासिक कथाझ्रों को सरल तथा गेरजक शुली मे वर्णन क्रना है, इनमे. से कु कु॒तविक कुछु अध्च-वास्तुविक %.1र कुछ धर्म, पुर॒य व सच्चरित्रता की ब्रेरणा देने के लिये कह्पित भी होगी है । णुर मे प्रत्येक विषय को धर्म, सद्ाचार, दीति का ..पुद देकर लोक-शिक्षा का ध्यम्‌ बनाने की च्रेष्टा की गई है। इसके लिये पुराण-लेखको को घटनाओं के शत में सशोधन, परिवर्तत तथा कल्पता का आश्रय अ्रवश्य लेना पडा है, पर | की मूल आधार प्राय ठीक ही है और यदि हम उनके रूपक, अलफ़रार, , शयोक्ति, अर्थवाद का विश्लेषण करके अन्तराल में भॉके तो अनेक बहुमूल्य *र कल्याणकारी मणि-समुक्ताओरो की प्रात्ति हो सकती है । |




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