वामन पुराण भाग - 1 | Vaman Puran Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
501
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जन्म:-
20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)
मृत्यु :-
2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत
अन्य नाम :-
श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी
आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |
गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत
पत्नी :- भगवती देवी शर्मा
श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श मिक्का
[मिक्का
अठारह पुराणो कौ जो सूचियाँ विभिन्न घ॒र्म ग्र'धों में दो गई
उनम वामन पु ण का नम्बर चोदहवां है । पर इससे यह निष्कर्प' नहीं
निकला” कि यह अन्य पुराणों को अपेज्षा कम मत्त्त्त का है। यद्यति
इसका आकार छोटा ही है पर इस्तन पुराणों के समी अ गी का ययोचित
वर्णन किया गया है और इपकी प्रतिघाइव शेतों अतक पुराणों और
उप पुराणों से अधिक स्पष्ट और विवेचनापूर्ण है । इसकी एक विशेषता
यह है कि इममे जो प्रसिद्ध पोराणिक उपाख्यात दिये हैं, उतम अन्य
पुराणों से आश्च्यंजनक भिन्नता है ॥ बहीं-कहीं तो पुराण लखक से
कई-कई कथाओं को मिला कर एक नई कथा ही रच डाली है 1
इपकी दुपरी विशेषत्रा यह है कि यद्यपि यढ़ एड शैवपुराण के
रुप मे प्रसिद्ध है, पर इसमें विष्णु को कही उम्र तरह नीचा नही दिखाया
गया है, जैम कई अन्य पुराणों मे मिलता है | इममे इन दोनो फो भो
समान दर्जे पर माना गया है।साथ ही इसमें कही भी कोई ऐसा
इलोक नहीं मिलता जिसमें दिण्यु को निन््दा को गई हो । जब कि कु
शेव लेखक यहाँ तक लिख गये हैं कि “विध्गु दर्शान मात्नोण शिद्र द्रोह:
प्रजायते” ( विध्यु के दर्शन करने से शिदर का द्ोह होता है)वहाँ “वामन
धुराण'! म कई बार शिवजी विष्णु के समक्ष सहायवार्थ पहुँचे हैं और
उनवी बडी स्तुति की है 1
दक्ष यज्ञ और सती की कथा--
वामन पुराण की जिन क्याओं में अन्य पुराणों से प्रथकता पाई
जाती है उनमे सब छे अधिक ध्याद आकपित करने वाली कथा सतो
के देह त्याग की है । शिव पुराण, रामायण तथा बन््य सब पुराषनद्य्यों
में हम यही पढ़ते आये थे कि घिव-मार्या सतो निमत्ण ने साने पर
भो अपने पिता दक्ष के यज्ञ में गई थी और जद उसने वहाँ शित्र का
भाग न देखा तो दह वहाँ उपस्थित सब छोगों को अभिश्यप
, हैदी हुई कसकृर मस्म हरे गई ३ यह समाशार सुत ऋर शिव
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