सर्वार्थ सिद्ध | Sarvarth Siddhi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
37 MB
कुल पष्ठ :
672
श्रेणी :
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No Information available about पं पन्नालाल जैन साहित्याचार्य - Pt. Pannalal Jain Sahityachary
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तावना * १७
किन्तु इस आधारके होते हुए भी मूल सूत्र अ्न्थका थह नाम है इसमें हमे रसन्देह है, क्योकि एक
ते ये उत्थानिकाके श्लोक और भाष्यके अन्तमे पाई जानेवाली प्रशस्ति मूल सूत्र ग्रन्थके अंग न होकर भाष्यके
अंग है और भाष्य सूत्ररचनाके बाद की कृति है। दूसरे तत्वार्थमूत्रके साथ जो भाष्य की स्वतन्त्र प्रति उपलब्ध
होती है उसमे प्रत्येक अध्याय की समाप्ति सूचक पुष्पिकासे यह विदित नहीं होता कि वाचक उमास्वाति तच्तवार्थ-
भाष्यको तत्चार्थाधिगमसे भिन्न मानते हैं। प्रथम अध्यायके अ्रन्तमे पाई जानेवाली पुष्पिकाका स्वरूप इस
प्रकार है --
इति तत्त्वार्धाधिगमे:हृत्प्रवचनसंग्रहे प्रथमो5ध्याय; समाप्त; |
साधारणतः यदि किसी स्व॑तन्त्र ग्रन्थके अध्याय की समाप्ति सूचक पुष्पिका लिखी जाती है तो उसमेँ
केवल मृल- ग्रन्थका नामोल्लेख कर अध्यायकी समाप्तिकी सूचना दी जाती है और यदि टीकाके साथ
अध्यायकी समासिकी सूचक पुष्पिका लिखी जाती है तो उसमें मूल अन्थका नामोल्लेख करनेके बाद अथवा
बिना किये ही टीकाका नामोल्लेख कर अध्याय की -समाप्तिकी सूचक पुष्पिका लिखी जाती हैं। उदाहरणार्थ
केवल तच्चार्थसूत्रके अध्यायकी समाप्तिकी सूचक पुष्पिका इस प्रकार उपलब्ध होती है-
इति तत्त्वाथसूत्र प्रथमोडध्यायः समाप्त: ।
तथा थेकाके साथ तच्चार्थसूत्रकी समास्तिकी सूचक पुष्पिकाका स्वरूप इस प्रकार है--
इति तत्त्वाथवृत्ती सर्वाथसिद्धिसंज्ञकार्या प्रथमोडध्याय, समाप्त, ।
यहा पृज्यपाद स्वामीने तत्वार्थवूत्र॒का स्वतस्त्र नामोल्लेख किए, बिना केवल अपनी तल्वार्थ पर लिखी गई
वृत्तिका उसके नामके साथ उल्लेख किया है | इससे इस बातका स्पष्ट शान होता है कि तत्नार्थ नामका एक स्व॒तन्त्र
ग्रन्थ है और उस पर लिखा गया यह वृत्तिग्रन्थ है । बहुत समव है कि प्रत्येक अध्यायकी समाप्ति सूचक
पुष्पिका लिखते समय यही स्थिति वाचक उमास्वातिके सामने रही हैं। इस द्वारा वे तत्ार्थको स्व॒तन्त्र अन्थ
मानकर उसका अधिगम करानेवाले भाष्यकों तच्चार्थाधिगम अ्ह्प्रवचनसग्रह कह्द रहे है। स्पष्ट है कि
तत्नार्थाधिगम यह नाम तच्वार्थसूत्रका न हो कर वाचक उमास्वातिकृत उसके भाष्यका है ।
२ दो खूजत्र पाठ
प्रस्तुत ग्रन्थके दो सूत्र पाठ उपलब्ध होते हैं-एक दिगम्बर परम्परा मान्य और दूसरा श्वेताम्बर परम्परा मान्य |
सर्वार्थसिद्धि और तत्वाथभाष्यकी रचना होनेके पूर्व॑ मूल सूत्रपाठका क्या स्वरूप था, इसका विचार यथास्थान
हम आगे करेंगे | यहाँ इन दोनों सूत्र पाठोका सामान्य परिचय कराना मुख्य प्रयोजन है ।
दिगम्बर परम्पराके अनुसार दसो अध्यायोंकी सूत्र संख्या इस प्रकार है--
हेरे + मरे + २६ ४२--४२- २७ -+- २३६ -+- २६--४७-+- ६ 5 २५४७ ।
श्वेताम्बर परम्पराके अनुसार दर्सों अध्यायोंकी सूत्र सख्या इस प्रकार है--
३४० + १२ + १८ + ४३ + ४४ +॑ २६-+ ३२४ + २६-४६ - ७ > ४४ |
प्रथम अव्यायर्म ऐसे पॉच स्थल मुख्य हैं जहाँ दोनों सूत्र पाठोमे मौलिक अन्तर दिखाई देता है। प्रथम
स्थल मतिशनके चार भेदोंका प्रतिपादक सूत्र है। इसमे दिगम्बर परम्परा अवाय” पाठकों और श्वेताम्बर परम्परा
तन
१-देखो रतलामकी सेठ ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन दवेताम्ब्र संस्था द्वारा प्रकाशित
तस्वार्थभाष्य पत्ति ।
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