सभासयतत्वार्थ धिगमसूत्र | Sabhasyatatvarth Dhigamsutra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28 MB
कुल पष्ठ :
498
श्रेणी :
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समाष्यत याधथाविगमसूअफ
विषय 6 ची।
४6४७
१ दि० स्वू० सुलफिा भेस्भफुशक कं४फ, ४
२ वर्णाचचलारी ऋछजाचुकमाणिका
विषय
मंगल और प्रंधकी उलप्िका सम्बन्ध-
नवुन्यवा अन्तिम वात्तपिक स।५५-
मोल-पुष्लार्व>ीसिद्धिके ल्थि. निर्दोष अपृत्ति
करों, जो यह न बने, तो यप्नाचारपेषक ऐसी
प्रशत्ति गरो, जो पुम्यधंधका कारण हो-
प्रवत्ति करनेताऊं मचुप्यो और डचको प्ररृत्तिवोकी
जपन्व मध्यभोजमता, औौरन करनवालेदी अपभपा
उत्तमात्तन पुष्प पोन हैं 2
अरटतरेवरी. पूजाकी
आपशस्यफीता
लरइतेव जप इतर हैं, तो वे उपदेश सी
पिद्ठ कारन देते हैं?
5५५ ैफ शफोफा समावान
तीवे>ककर्भओे कार्यमी इृथान्त द्वारो स्वटता
लअनिम तीधे+ श्रीमहाबीर भेभवानकी स्मरण
महावीर इल्चिवी ध्यास्या
भेचडनिकरे भुर्णोक्ता वर्धन
भेववानने मिस मोश्षतार $।. पईद।
इलदा मशिप्त स्व+*प, तथा उक्षका फल
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सम्ननन््धकारिका |
पृष्ठ विषय पृष्ठ
१ | जिस अकार सके ऐेजनी कोई आन्छाएित
२ | (ढक) नहीं सकता, उसी अफार तीर्थेकर द्वारा
उपदेश किये अनेकान्त सिद्धान्तंको एकान्तंपादी
मिल्कर सी पराजित चढ्ीं कर सकते, १०
३२ | सपवानमभद्दावीरकों चमर्कार, उनकी पेशना-उप-
देशका मह्प और वद्यमभाण विषयकी पग्रतिता. १०
है. | भगवानके बचनोंके एकदरेश संभ्रह करना भी
रे | बंढ़। $प५९ है ११
हु सपूणे जिनवचनफे सभ्हकी असभपताका आगस-
प्रभाग द्वारा समयेन १२
न पिता हे है १३
५. | लिनवचन छत्तनेवाओे और व्याध्यान. करने-
५ वालोंकी फल-भापति वरथन शी मे १३
५ | अचका व्यास्यान करनेके छिये पचा।मोंफों
६ | उप्सादिए करना १३
७ | पराओंको सदा श्रयो-कल्याणकारी मार्भफा ही
उपदेश पऐना चाहिए १४
९ 1 नप्ाष्य विषयकी अतिशा १४
१ पथम अध्याय ।
डछ न्- ध््ष्ठ
6५ | निःण, स्वामिनत्र आदि छद़ गूबुथोधोंका स्वल्प. २७
1७ | १ सव॒ | संस्था 3 क्षेत्र, ्ट सेन, ५फाल, ६ अन्पर,
७ भीष ओर अलपटते, अ० अनुयोगोफा स्वरूप ३१
1८ | छूनिका चमन ३३
१९ | प्रभागका बन 2छड
न परोज्ञ+। 4 । ओर न्ट मेदेका नन ३५
२२ [६ 8 चलता त्वा एप और छ01) भेदोंका बणन ३५
२३ | भरिशान+क नेट 3
डा हू... की सामान्व ख्टेय ३७
3६ 1 अमप्रट, ४टा, अपाय, घारणाका स्पृवूप
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