प्रेमांप्रेमेयम् | Pramaprameya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
184
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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जीवराज जेैंन ग्रंथमालाका परिचय
सोछापूर निवासी ब्रञ्मचारी जीवराज गौतमचदजी दोशी कई वर्षोसे
ससारसे उदासीन होकर घर्मकार्यमे अपनी चृत्ति छुगा रहें थे | सन १९४०
में उनकी यह प्रतछ इच्छा हो उठी कि अपनी न्यावोपानित संपत्तिका
उपयोग विशेष रूपसे घम और समाजकी उन्नतिके कार्यम करें। तदनुसार
उन्होंने समस्त देशका परिभ्रमण कर जैन विद्वानोंसे साक्षात् ओर लिखित
सम्मतिया इस बातकी संग्रह कीं कि कौनसे कार्यमें संपत्तिका उपयोग किया
जाय | स्फुट मतसचय कर लेनेके पश्चात् सन् १९४१ के ओष्म कालमें
ब्रह्मचारीनीने तीर्यक्षेत्र गजपंथा ( नासिक ) के शीतछ वातावरणमें विद्यनोंफी
समाज एकत्र की और ऊद्ापोहपूर्वक निर्णयके लिए. उक्त विषय प्रस्ठुत
किया । विद्वत्सम्मेठनके फलस्वरूप अह्मचारीबीने जेन संस्कृति तथा
साहित्यके समस्त अगके सरक्षण, उद्धार और प्रचारके हेठ॒ुसे जन सस्क्ृति
संरक्षक संब ” की स्थापना की ओर उसके छिए ३००००, तीस इजारके
दानकी घोषणा कर दी। उनकी परिग्रहनिद्ृत्ति बढ़ती गई, और सन्
१९४४ में उन्होंने ठग्मग २,००,००० , दो छाखकी अपनी सपूर्ण संपत्ति
सबको टस्ट रूपसे आअर्पण कर दी | इस तरइ आपने अपने सर्वस्व का त्वाग
कर दि, १६-१-५७ को अत्यन्त सावधानी और समाघानसे समाधि मरण की
आराधना की | इसी संघके अंतर्गत जीवराज जैन ग्रेयमाछा ?का संचालन
+ हो रहा है। प्रस्ठत अंय इसी अथमाछाका अठारहवोँ पृष्प है |
नक च
5. 5. ७. सेक्ल्क
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