भगवती आराधना भाग दो | Bhagvati Aradhana Bhag Do

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Bhagvati Aradhana Bhag Do by कैलाशचंद्र सिद्धान्तशास्त्री - Kailashchandra Siddhantshastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६६४ मंगवतती आराधना भ्रश्चस्तनिदाननिरूपणार्थोत्तरगाथा--- सजमहेद्‌ पुरिसत्तसबलविग्यिसघद्‌णवुद्धी । सावअबधघुकुलादीणि णिदाण होदि हु पसत्थ ॥१२१०॥ 'सजमहेदु ” सममनिमित्त । 'पुरिसत्तम्त्तवलविरियसघडणबुद्धो' पुरुपल्मुत्साह , बंछ शरीरगत दाढघं, वोय वीर्यान्तरायक्षपोपशमज परिणाम । अस्वथिवन्धविषया वज्ऋषभनाराचसहनतादि । एतानि पुस्पत्वा- दोनि सयमसाधनाति गरम स्पुरिति वित्तप्रणिधान प्रशस्तनिदान । 'सावयबघुकुलादिनिदान! श्रावकबन्युनिदाना अदरिद्रकुछे, अवन्युवुके वा उत्पत्ति प्रार्यना प्रशस्तनिदान ॥६२१०॥ अप्रशस्तनिदानमाचष्टे--- माणेण जाइकुलरूवमादि आइरियगणघरजिणत | सोभग्गाणादेय पत्थतो अप्पसत्य तु ॥१२१श॥ सा्णण' मानेन हेतुता । 'जातिकुलहवमादि” जातिर्मादृवश , कुल पितृवश , जातिकुलस्पमात्रस्य सुछमत्वात्पश्रतजात्यादिपरिग्रह । इह 'आइरियगणघरजिणत्त' आचार्यत्व, गणधरत्व, जिनत्व ५ 'सोभग्गाणा- ज्ज' सौभाग्य, आज्ञा, आदेयत्व च। 'पछ्छेतो' प्रार्थपत । 'भप्पसत्य तु अप्रशस्तमेव निदान मातकपाय- दूपितत्वात ॥६१३ १॥ प्रशस्त निदानका कथन करते है-- सा०--सयममे निर्मित्त होनेसे पुस्पत्व, उत्साह, शरीरगत हृढता, वीर्यान्तरायके क्षयोपश्षम से उत्पत्न वीयंहूप परिणाम, अस्थियोके बन्चन विशेष रूप वज्यऋपभताराच सहनन आदि, ये सयम सावन मुझे प्राप्त हो, इस प्रकार चित्तम विचार होना प्रशस्त निदान है। तथा मेरा जन्म श्रावक कुलमे हो, ऐसे कुछमे हो जो दरिद्र न हो, बन्धु बान्वव परिवार न हो, ऐसो प्रार्थना प्रशस्त निदान है ॥१२१०॥ विज्लेषार्थं--एऊ प्रतिमे दरिद्रकुल तथा एकमे बन्धुकुल पाठ भी मिलता है। दीक्षा लेमेके लिये दरिद्रकुल भी उपयोगी हो सकत्ता है और सम्पन्न घर भी उपयोगी हो सकता है। इसी तरह बन्बु वान्वव परिवारवाला कुछ भी उपयोगी हो सकता है और एकाकीपना भी । मलुष्यके सनम विराक्ति उत्पन्न होने को बात है ॥१२१०॥ अप्रण॒स्त निदान कहते हैं-- गा०--मानरूपायके वज्ञ जाति, कुल, रूप आदि तथा आचायंपद, गणधरपद, जिनपद, सौभाग्य, आज्ञा और आदेंय आदिकी प्राप्तिकी प्राथंना करना अप्रशस्त निदान है ॥१२१शा टी०--माताके वक्षको जाति और पिताके वछकों कुल कहते है। जाति कुल और रूप मात्र तो सुलभ है क्योंकि मनुष्य पर्यायमे जन्म लेनेपर ये तीनो अवश्य मिलते है। इसलिये यहाँ जाति कुछ और रपये भ्रशसनीय जाति आदि छेना चाहिये । मान कपायसे दूपित होनेसे यह अप्रशस्त निद्यन है ॥१११शा £ दरिद्रकुले-भ० |




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